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५ : सम्यक और मिथ्या ज्ञान
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' -११: कुछ लक्षण
२. उपरोक्त सम्यक् प्रमाण के आधार पर बोला या लिखा गया
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-- उपदेश आगम भी, सम्यक् प्रमाण है ।
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मिथ्या लक्षणः
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१. उस अखंड चित्रण रूप प्रमाण से निरपेक्ष अर्थात् अनुभव शून्य के संपूर्ण अंगों का शाब्दिक ग्रहण मिथ्या
वस्तु
अनेकान्त है । २. वस्तु के संपूर्ण अंगों का पृथक पृथक ग्रहण मिथ्या "अनेकान्त है ।
१. उपरोक्त प्रमाण या अनुभव से निरपेक्ष वस्तु के एक दो आदि अगों का अधूरा शाब्दिक ग्रहण मिथ्या एकान्त है । २, परस्पर मे ययास्थान सम्मेल से रहित पृथक पृथक, बिखरे हुए अंगों का परस्पर विरोधी खंडित ग्रहण मिथ्या एकान्त है। १. वस्तु के अनुरूप चित्रण या अनुभव के अभाव में केवल शब्दों के आधार पर का कल्पित ति ग्रहण मिथ्या प्रमाण है ।
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२. उपरोक्त मिथ्या प्रमाण के आधार पर दिया गया उपदेश व लिखा गया शास्त्र भी मिथ्या प्रमाण है ।
३. - सम्यग्ज्ञान अनेकोअगो के युगपत ग्रहण स्वरूप होने के कारण सम्यक् अनेकान्त है ।
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१. प्रमाण ज्ञान या अनुभव ज्ञान के सद्भाव मे तत्सापेक्ष खडित ज्ञान या अगों का पृथक पृथक विकल्प सम्यक्नयज्ञान है ।
या लिखा
२. उपरोक्त सम्यकुनय ज्ञान के आधार पर बोला गया वचन व वाक्य व्यक्तव्य भी सम्यक्नय है ।
३. पृथक पृथक अगों का सापेक्ष रूप ज्ञान होने के कारण यह सम्यगेकान्त है ।