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५. सम्यक और मिथ्या ज्ञान २
:११. कुछ लक्षण साथ साथ वर्तने वाले, सब लक्षण सम्यक् हैं और उसके अभाव मे मिथ्या। इसी को प्रमाण की सापेक्षता कहते हैं । इसी प्रमाण की सापेक्षता के आधार पर नीचे इन छहों के लक्षण करने मे आते है । जिसको मै अखंड चित्रण कहता चला आया हू उसी को आगम में अनुभव नाम से कहा है। अतः नीचे उसी अर्थ में अनुभव शब्द का प्रयोग करूगा ।
____ इस पर से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अनुभव ज्ञानी ही यथार्थतः नयों का प्रयोग कर सकता है, शब्दागम ज्ञानी नहीं। और इसलिये जो शब्दागम भी भली भाति जानते नही उनके द्वारा तो "निश्चयनय व व्यवहारनय” इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग तो आज हो रहा है वह सार्थक कैसे हो सकता है ? वह तो केवल प्रलाप मात्र है। वह बेचारे न्य का नाम तो लेते है पर नय को जानते नही। अनेकान्त
- 1 ... १ वस्तु के अनुरूप हृदय पटें पर खिचे 'अखंड चित्रण रूप प्रमाण
को या अनुभव ज्ञान को सम्यक अनेकान्त कहते है । २. वस्तु के संपूर्ण विरोधी अगों । का अखंड ग्रहण सम्यक् अने .. कान्त है। . . . . क - -
एकान्त १. उपरोक्त प्रमाण ज्ञान या अनुभव के सापेक्ष वस्तु के एक __दो आदि अधूरे अंगो का विकल्प ज्ञान सम्यक् एकांत है ।। २. परस्पर में यथा स्थान समेल बैठाते हुए पृथक पृथक अंगों की . मित्रता का ज्ञान सम्यगेकान्त है ।
प्रमाणः १. वस्तु के अनुरूप ही अनेकाङ्ग वस्तु का हृदय पट पर अखंड चित्रण
या अनुभव सम्यक् प्रमाण है ।