________________
सहारनपुर-सरसावा है । उसकी ओर दृष्टि नहीं। ज्ञानके समान अन्य कोई हितकारी नहीं, क्योंकि ज्ञान ही आत्माका मूल असाधारण गुण है। उसीकी महिमा है जो यह व्यवस्था बन रही है। एक दिन नईमण्डी भी गये। लोग बहुत भीड़के साथ ले गये जिससे कटका अनुभव हुआ। यहाँ प्रवचनमे अजैन जनता बहुत आई
और उत्सुकता भी उसे बहुंत थी परन्तु मतविभिन्नता बहुत ही बाधक वस्तु है। यथार्थ वस्तुका स्वरूप प्रथम तो जानना कठिन है। फिर अन्यको निरूपण करना और भी कठिन है। वस्तु स्वरूपका परिचय होना ही कल्याणका मार्ग है, परन्तु उसके लिये हमारा प्रयास नहीं । प्रयास केवल वाह्य आडम्बरके अर्थ है । मुजफ्फरनगरमे ६-७ दिन रुकना पड़ा।
सहारनपुर-सरसावा चैत्र सुदी ६ सं० २००६ को मुजफ्फनगरसे ५ मील चलकर जंगलमे ठहरे। यहाँ पर १ पुल बना हुआ है जिसके ५२ दरवाजे हैं। यहाँ पर ८ चौके आये। हमारा श्री मुनीमजीके यहाँ भोजन हुआ। भोजन पवित्र था। इसका मूल कारण था कि वे स्वयं पवित्र भोजन करते हैं, अतएव अतिथिको भोजन देने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं । सदा मनुष्यको शुद्ध भोजन करना चाहिये, इससे उसकी बुद्धि शुद्ध रहती है, शुद्ध बुद्धिसे तत्त्वज्ञानका उदय होता है, तत्त्वज्ञानसे पर भिन्नताका ज्ञान होता है और पर भिन्नताका ज्ञान ही कल्याणका मार्ग है । ४ मीलके वाद रोहाना आगये, स्थान उत्तम है। १ मन्दिर है, ४ घर जैनियोंके हैं, मकान वहुत उत्तम हैं परन्तु वहुत आदमी प्रायः दर्शन नहीं करते । २ बजे सार्वजनिक सभा हुई। श्रीवर्णी मनोहरलालजीका व्याख्यान हुआ। इनके सिवा अन्य त्यागियोंके भी व्याख्यान हुए। सभीने अच्छा कहा ।