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________________ मेरी जीवन गाथा हुआ। पश्चात् भोजन किया। मध्यान्ह वाद आमसभा हुई। ५०८ मनुष्य होंगे। श्री चिदानन्दजी तथा पूर्णसागरजीने परिश्रमके साथ वक्तव्य दिया। वक्तव्यमे मुख्य विपय अष्टमूलगुण था। यहाँ मुजफ्फरनगरसे बहुत मनुष्य आये। उन्होंने बहुत ही आग्रह किया कि कल ही मुजफ्फरनगर आइये । चाहे आपको कष्ट हो इसकी परवाह न कीजिये । हमारा प्रोग्राम है, इसीके अनुकूल आप प्रवृत्ति करिये, इसीमे हमारी प्रतिष्ठा है। चैत्र वदी १४ सं० २००५ को ६३ बजे प्रातःकाल चलकर ह बजे वहलना पहुँच गये। यहाँ पर १ प्राचीन जिन मन्दिर है। उसमे श्रीपार्श्वनाथ भगवान्का प्रतिविम्ब बहुत ही मनोज्ञ है । यहाँ पर मुजफ्फरनगरसे १०० जनसंख्या आई। भोजनोपरान्त २३ वजे यहाँसे चलकर कम्पनीबाग आगये । वहाँसे कोई २००० आदमियोंका जुलूस निकला । २ तोला धूल फाँकनेमे आई होगी। ५ बजते बजते जैन स्कूलमे पहुँच गये। यहीं पर जनताका बर्हत समारोह हुआ। अगले दिन बाजार वन्द था, इसलिये प्रवचनमें बहुत मनुष्य आये । प्रवचनके लिये प्रवचनसारकी निम्न गाथा थी जो जाणदि अरहतं दबत्तगुणत्तपन्जयत्तेहि । सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं ॥ जो द्रव्य, गुण और पर्यायकी अपेक्षा अरहन्तको जानता है वह आत्माको जानता है और जो आत्माको जानता है उसका मोह विनाशको प्राप्त होता है। अनादि कालीन मोहके कारण यह जीव आत्मस्वभावसे च्युत हो रहा है। मोहकी तीव्रतामे ता इसे यह भी प्रत्यय नहीं होता कि शरीरके अतिरिक्त कोई आत्मा नामका पदार्थ है भी। वह शरीरको ही अहं मानकर उसकी इष्ट अनिष्ट परिणतिमे हर्ष-विपाद कर सुखी-दुखी होता है । यदि
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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