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मेरठकी ओर गुलावटीमें श्री मोहन जैसवालकी धर्मशालामें ठहर गये। यहाँ पर कई बुढ़ियों आई और केला आदि चढ़ा गई । उन्होंने समझा कि यह उड़िया वाया हैं। अभी तक भारतमें वेषका आदर है। यहाँ पर मेरठसे वावू ऋपभदास जी आ गये। उन्हींके यहाँ भोजन किया । आप बहुत ही सज्जन हैं। यहांसे ३ मील चलकर १ धर्मशालामें ठहर गये। एक कोठरी थी उसीमें ५ आदमियोंने गुजर किया। रात्रिको शीतका बहुत प्रकोप था । परन्तु अन्तमें वह प्रकोप गया । प्रातःकाल ७३ बजे जब दिनकरकी सुनहली धूप सर्व ओर फैल गई तब चले। कुछ समय बाद लगा ब्राह्मणोंके ग्राममें पहुंच गये, तगा लोग अपनेको त्यागी कहते हैं, ये लोग दान नहीं लेते हैं देते हैं। त्यागकी महत्ता समझते हैं । जिनके यहाँ ठहरे थे उनका पूर्वज बहुत विद्वान् था। उनके घर बहुतसे ग्रन्योंका संग्रह था, शिष्ट मानव था । मेरठसे दो चौका आ गये थे उन्हींके यहाँ भोजन किया। पिछले दिनों एक महिलाने प्रेरणा की थी कि जहाँ जाओ सर्व हितके लिये उपदेश दो, धर्मका प्रचार करो पर हमने उस पर कुछ भी चेष्टा न की। आखिर संस्कार भी तो कोई वस्तु है। वास्तवमे यही उपेक्षा हमारे उत्कर्षमै वाधक है। यहाँसे २ कोश चलकर हापुड़ आगये। यह बहुत भारी मण्डी है। यहाँ पर वर्तनोंका .महान् व्यापार है तथा यहाँ पर १ वर्षमें करोड़ों रुपयेका सट्टा हो जाता है। सहस्रों मन गुड़ यहाँ पर प्रतिदिन आता है। यहाँ पर मन्दिर बहुत सुन्दर है। प्रतिमाएँ भी अत्यन्त मनोज्ञ हैं । आजकल कारीगर बहुत निपुण हो गये हैं। दर्शन करनेके बाद श्रीरामचन्द्रजीके गृहमें आये । वहुत ही सुन्दर गृह है । आपके ३'सुपुत्र हैं। तीनों ही बुद्धिमान् हैं । आपका कुल धार्मिक है, आपके यहाँ शुद्ध भोजन बनता है तथा आपकी दानमें प्रवृत्ति अच्छी है। कन्याशालामें श्री चौ० रामचरणलाल