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- मेरठको और यह आपकी शिष्टाचारता है । अव मै आपका अधिक समय नहीं लेना चाहती ....." इतना कह प्रणाम कर वह चली गई। ___ महिला चली गई और हृदयके अन्दर विचारोंका एक संघर्ष छोड़ गई। उसके चले जाने पर मैंने बहुत कुछ मानसिक परिश्रम किया। मनमे विचार आया कि क्यों तुम्हे एक अबला इतनी शिक्षा दे गई ? क्यों उसका इतना दम्भ साहस हुआ ?मैं तो उसका कथन श्रवण कर आत्मीय दुर्वलता पर ध्यान देने लगा। विचार किया कि ७४ वर्षकी आयु होनेवाली है परन्तु तुमने आज तक शान्ति नहीं पाई। प्रथम तो सम्यग्दर्शन होनेके बाद आत्मामे अनन्त संसारकी विच्छित्ति हो जानेसे अनन्त ही शान्ति आना चाहिये। अप्रत्याख्यानावरण कषाय शान्तिकी घातक नहीं । केवल ईषत् संयम जिसे देशसंयम कहते हैं नहीं होने देती । देशसंयम घातक कषाय आत्मस्वरूपके बोध होनेमें बाधक नहीं । अनन्तानुबन्धी कपायके अभावमे आत्मा हर समय चाहे स्वात्मोपयोगी हो चाहे पर पदार्थोंके ज्ञानमें उपयुक्त हो आत्मश्रद्धासे विचलित नहीं होता। यही कारण है कि यह सर्व संसारके कार्योमे व्यग्र रहने पर भी व्यग्र नहीं होता। उसकी महिमा अवर्णनीय और अचिन्त्य है। जिस दिन सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो गया उस दिन आत्मा कतत्वधर्मका स्वामी मिट गया। __अज्ञानके कारण ही यह आत्मा पर पदार्थोंका कर्ता बनता फिरता है, अतः जब अज्ञानभावकी-मोह मिश्रित जानकी निवृत्ति हो जाती है तब यह अकर्ता हो जाता है। किसी पदार्थका अपने आपको कर्ता नहीं मानता। जिसे इस तत्त्वकी प्राप्ति हो चुकी उसे अब चिन्ता करनेकी कौन सी बात है ? जिसके पास ६६६६६६६) रुपये ६३ पैसे और २ पाई हो गई उसे कोट्यधीश कहना कुछ अत्युक्ति नहीं परन्तु परमार्थसे अभी १ पाईकी कमी..