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मेरी जीवन गाथा प्रार्थनाको आप भन न करेंगे। मैंने कहा-मां जी ! मैं यही वस्त्र
ओढ़ता हूं तथा रात्रिको कुछ खान पान नहीं करता हूं। बुढ़िया माँ सुन कर बहुत उदासीन हो वोली-मुझको बहुत ही क्लेश हुआ। अव एक प्रार्थना करती हूँ कि प्रातः काल मेरे यहाँ भोजन कर प्रस्थान करें। अनन्तर हम लोग शयन कर गये। प्रातःकाल हुआ सामायिक कर चलने लगे तो बूढी माँ आ गई और बोली कि यह क्या हो रहा है ? हमने कहा-माँ जी ! जा रहे हैं। वह वोली - यह शिष्टाचारके अनुकूल आचरण नहीं। हमने कहा-माँ । फिर घाम हो जावेगा। उसने कहा-यह उत्तर शिष्टाचारका विघातक है। अच्छा, तुम्हारी जो इच्छा सो करो किन्तु २) ले जाओ उनके फल लेकर सब लोग व्यवहारमे लाना तथा पुत्रसे बोली-वेटा! घरके ताँगामें उनका सामान भेज दो। हम लोग बुढ़िया मकि व्यवहारसे सन्तुष्ट हो चल दिये और मार्गमे उसीके सौजन्य पूर्ण व्यवहारकी चर्चा करते रहे । उसका बेटा महावीर राजपूत २ मील तक पहुँचाने आया और मेरे वहुत आग्रह करने पर वापिस लौटा । मेरे मनमें आया कि यदि ऐसे जीवोंको जैनधर्मका यथार्थ स्वरूप दिखाया जाय तो बहुत जनताका कल्याण होवे ।।
खुर्जासे ४ मील चल कर बुलन्दशहर आगये और वहाँ वालोंने शिष्टाचारके साथ हमें मन्दिरजीकी धर्मशालामे ठहरा दिया। यहाँ पर मन्दिरजीके नीचे भागमें मन्दिरकी दुकानमें एक सज्जन मनिहारीकी दुकान किये थे उन्हींके घर पर भोजन हुआ। आप बहुत ही उदार व्यक्ति थे, आपका व्यापार लाहौरम होता था, वहुत ही धनाढ्य थे परन्तु लाहौरके पाकिस्तानमें जानसे
आप यहाँ आ गये और आपकी सम्मत्तिका बहुत भाग वहाँ ही रह गया। इसका आपको खेद न था, आपके हृदयसे यही वाक्य निकले कि संसारमें यही होता है। जहाँ पर सहस्रों नरेशोंको