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मेरी जीवन गाथा
मुख्य पुत्र सेठ मेवारामजी थे जो सेठ ही नहीं उस समयके प्रमुख विद्वान् थे। उस समय आपकी गणना विद्वानोंमें ही नहीं प्रमुख सेठोंमे भी थी। आप विद्याके रसिक थे। एक संस्कृत वियालय भी आपके द्वारा चलता था जिसमें २५ छात्र अध्ययन करते थे। छात्रोंको मोजनाच्छादन आपकी तरफसे था। क्वीन्स कालेज बनारसकी मध्यमा परीक्षा तक व्याकरण न्याय काव्यका अध्ययन होता था।
आप स्वयं अध्ययन अध्यापन करते कराते थे। आप विद्वान् ही न थे बक्ता और बाग्मी भी थे तथा आर्यसमाजके विद्वानोंसे शास्त्रार्थ भी करते थे। यहाँ पर पं० तेजपाल जी भी प्रसिद्ध विद्वान् थे, आप विद्वान् ही नहीं धनाढ्य भी थे। यहीं पर पण्डित नैनसुखदासजी थे जो स्त्री सभामें शास्त्र पढ़ते थे। यहीं पर श्रीसेठ मेवाराम जीके चाचा सेठ अमृतलालजी थे जो अत्यन्त धर्मात्मा और शास्त्रके वक्ता थे। आपकी प्रवृत्ति आरम्भसे बहुत भयभीत रहती थी । बहु आरम्भकी आप निरन्तर निन्दा करते थे । मिलके कार्योंसे आपको महती घृणा थी। आप छात्रोंको निरन्तर दान देते थे। आप सात भाई थे, सातों ही सम्पन्न और धार्मिक विचारोंके थे। मैंने भी खुर्जामें विद्याभ्यास किया था। बनारसकी प्रथमा परीक्षा यहींसे दी थी। यहीं पर न्याय पढ़ना प्रारम्भ किया था। पण्डित चण्डीप्रसादजी जो कि व्याकरणके निष्णात विद्वान् थे उनसे पढ़ना शुरू किया था। सेठ मेवारामजी उन दिनों मुक्तावली आदिका अध्ययन कर चुके थे। व्याकरणकी मध्यम परीक्षा उत्तीर्ण हो चुके थे। यहाँ पर १ सुन्दरलाल वैश्य थे जो वहुत व्युत्पन्न थे। __ वर्तमानमें सेठ मेवारामजीके सुपुत्र शान्तिप्रसादजी बहुत ही योग्य हैं। उनके घर आहार हुआ, श्राप बहुत कुशल हैं, धर्ममे आपकी रुचि बहुत है, तत्त्वज्ञानके सम्पादनमें बहुत प्रयत्नशील '