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गया में चातुर्मासका निश्चय
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का समागम मिले तो आपकी परिणति विशेषरूपसे निर्मल हो सकती है ।
दिल्ली से राजकृष्ण भी आये । आपने मूढविद्री में स्थित श्री धवलके फोटो लेनेका पूर्ण विचार कर लिया है । इस कार्य मे १५००० ) व्यय होगा । आपका निश्चय है कि यदि यह रुपया कोई अन्य न देगा तो हम अपनी तरफसे लगा देंगे । काल पाकर आ जावेगा । आपका उत्साह और अदम्य साहस प्रशंसनीय है । संभव है आपकी प्रतिज्ञा पूर्ण हो जावे क्योंकि आपकी भावना अति निर्मल है । हमारा निजका विश्वास है कि यह कार्य अवश्य पूर्ण होगा । संसारमे जो दृढ़प्रतिज्ञ होता है उसके सर्व कार्य सफल होते हैं । पन्द्रह दिन रहनेके बाद आषाढ़ कृष्णा १ को विचार किया कि पारव प्रभुकी निर्वाण भूमिपर पहुँचनेके संकल्पसे तूं ग्रीष्मकाल मे भी प्रयाण किया है । अब यहां निकटमे आकर उलझ जाना उत्तम नहीं । ईसरीसे पं० शिखरचन्द्रजी तथा न० सोहनलालजी भी आ गये । गयावालोंको जब यह समाचार विदित हुआ तब वे यहीं चौमासाकी प्रेरणा करने लगे परन्तु हमने यही निश्चय प्रकट किया कि अब तो पार्श्वप्रभुकी शरण में जाना चाहते हैं । मेरा उत्तर श्रवण कर लोग निराश हो गये । ईसरी जानेके लिये उद्यम किया कि आकाशमे सघन बादल छा गये, इससे विवश होकर इस दिन रुक जाना पड़ा ।
आषाढ़ कृष्णा द्वितीया सं० २०१० के दिन दिनके २ वजेसे ४ मील चलकर १ क्षत्रियके बंगलापर ठहर गये । हमारे चले जानेसे गयावालोंको बहुत खेद हुआ । हमको भी कुछ विकल्प हुआ । दूसरे दिन प्रातःकाल बंगला से १ मील चले परन्तु मार्गमें कहीं शुष्क प्रदेश नहीं मिला । सब ओर हरी-हरी घास तथा मार्ग में जन्तुओंकी प्रबलता दिखी। ऐसे मार्गपर चलना हृदयमें अरुचिकर हुआ