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मेरी जीवन गाथा एक ग्लानिका भाव उठने लगा-ग्लानिका भाव इसलिए कि मैंने नर तन पाकर भी कुछ नहीं किया
असी वर्षकी श्रायुमें किया न बातम काम |
ज्यों आये त्यों ही गये निशदिन पोसा चाम ॥ क्या कहें ? किससे कहे ? कुछ कहा नहीं जाता ? व्यर्थके जंजालमें पड़कर अपनी अभिलापाओंको न रोक सके। यथार्थमें ‘यों करेंगे, त्यों करेंगे' ऐसे शब्दों द्वारा जनताके समक्ष शेखी बघारना कुछ लाभदायक नहीं । पानीके विलोलनेसे हाथ चीकना नहीं होता। वह तो परिश्रमका कारण है।
बालमियाँनगर श्री साहु शान्तिप्रसादजीके पुरुषार्थका फल है। पुरुषार्थ उसीका सफल होता है जिसके पास पूर्वोपार्जित पुण्य कर्म है। अथवा पूर्वोपार्जित पुण्य कर्म भी पूर्व पर्यायका पुरुषार्थ ही है। यहाँ आपके द्वारा निर्मित नाना कारखाने हैं। कार्यकर्ताओंके रहनेके लिए अच्छे स्थान हैं तथा धर्मसाधनके लिए सुन्दर मन्दिर है । शान्तिप्रसाद प्रकृत्या शान्त तथा भद्र परिणामी हैं। इस समय । आपके द्वारा जैनधर्मके उत्कर्पको वढ़ानेवाले अनेक कार्य हो रहे हैं। आपकी पत्नी रमारानी भी सुयोग्य तथा सुशीला नारी है। पं० महेन्द्रकुमारजी तथा पं० फूलचन्द्रजी बनारससे यहाँ आये थे । साथमें नरेन्द्रकुमार वालक भी था। पं० युगलने साहु शान्ति प्रसादजीसे सन्मति निकेतनके अर्थ माँग की तो आपने १३ कमरे दुहरे करवा देनेका वचन दिया और १००) मासिक छात्रावास चलानेको कह दिया। आप वहुत ही उदार मानव हैं। विशेषता यह है कि आप निरपेक्ष त्याग करते हैं। नरेन्द्रकुमार छात्र वरत ही शिष्ट तथा होनहार वालक है। प्रकृतिका स्वाभिमानी है अतः किसीसे याचना नहीं करता। यदि कोई उसे विशेष रूपसे महायता देवे तो यह अद्भुत मानव हो सकता है।