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मेरी जीवन गाथा
में छात्रोंको पुरस्कार दिया गया । अन्तमें शान्तिपूर्वक सव लोग स्वस्थानको गये । श्रानन्दमयी माताका आश्रम विद्यालयके समीप ही गङ्गा तटपर है । मुझे वहां बुलाया गया अतः मैं भी अमावस्या के दिन वहां गया । बहुत ही सुन्दर भवन बनाया गया है | वहां अनेक साध्वियां तथा साधु निर्मल परिणामोवाले थे । क्रम विकास पर हमारा भाषण हुआ । अन्तमें आनन्दमयीने यह कहा कि अपना पराया मतभेद छोड़ो । आप बंगाली हैं । बंगाली लोग आपको बड़ी श्रद्धासे देखते हैं । एक दिन मैदागिन के मन्दिरमें गये । श्री पं० कैलाशचन्द्रजी तथा पं० जगन्मोहनलालजी कटनीका व्याख्यान हुआ । आत्मदर्शनका अच्छा प्रतिपादन हुआ । तदनन्तर हमने भी कुछ कहा । जनता अच्छी थी ।
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प्रथम वैशाख शुक्ला ३ को प्रातःकाल ५३ वजे चलकर एक उपवनमें ठहर गये । यहीं पर भोजन हुआ । यहाँ पर पं० पन्नालालजी व पं० फूलचन्द्रजी साहव आये । उपवनमें जो कूप है उसका जल अत्यन्त मिष्ट है । यह उपवन श्री मोतीलालजी सिंघईके लघु वालक सूरजमल्लका है । स्थान रम्य है । यदि कोई धर्मसाधन करे तो कर सकता है परन्तु इस समय धर्मसाधनकी दृष्टि चली गई है । अब तो लोग विषय साधनमे मग्न हैं । यहाँसे १३ मील चलकर सारनाथ (सिंहपुरी ) आ गये । सिंहपुरी श्री श्रेयान्स भगवान्का जन्मस्थान है । सुन्दर मन्दिर बना हुआ है । एक धर्मशाला तथा I उद्यान भी है । धर्मशाला में स्वच्छता कम है । प्रातःकाल मन्दिर में प्रवचन हुआ | दिल्लीसे पं० दरवारीलालजी तथा राजकृष्णका बालक प्रेमचन्द्रजी आये । २ घंटा रहे । यहाँ श्रारासे पं० महेन्द्रकुमारजी तथा एक सज्जन आये । उन्होंने कहा कि प्राराकी जैन जनता आपको आरामें चौमासा करनेका निमन्त्रण देती है । मैं सुनकर चुप रहा । यहीं पर कलकत्तासे सरदारमल हुलासरावजी
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