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________________ यनारस और उसके प्रचलमें कर दिया था उस समय आप एक ही ऐसे सहृदय विद्वान् थे जिन्होंने मुझ जैसे निराश व्यक्तिको प्रेमसे विद्याध्ययन कराया था। श्री शास्त्रीजीकी हमारे ऊपर पूर्ण कृपा थी। मुझे जो कुछ ज्ञान है वह उन्हींका दिया हुआ है। स्नानादिसे निवृत्त हो श्री सुपार्श्वनाथ भगवान्के दर्शन किये। तदनन्तर श्री हरिश्चन्द्रजीके यहाँ भोजन हुआ । सायंकाल छात्रोंके बीच भापण हुआ। रात्रिको यहीं विश्राम किया। दूसरे दिन विद्यालयके वालकोंने बहुत भक्तिके साथ भोजन कराया। उनकी प्रवृत्तिसे उनका आस्तिक्यभाव टपक रहा था। सायंकाल ५ बजे चलकर ६॥ वजे सन्मति निकेतनमें आगये। यहाँपर श्रीसेठ हुकुमचन्द्रजी इन्दौरवालोने बहुत ही रम्य जिनालयका निमोण कराया है। श्री महावीर स्वामीका विम्ब अत्यन्त सुन्दर और आकर्षक है । सन्मति निकेतनमे वे छात्र रहते हैं जो यूनिवरसिटीमे अध्ययन करते हैं । रात्रिको यहीं विश्राम किया । प्रातःकाल गङ्गाके तट पर प्रातःकालीन क्रियाओंसे निवृत्त हो हिन्दू विश्वविद्यालयके भवनोंको देखते हुए सन्मति निकेतनमे आगये । स्नानादिसे निवृत्त हो श्रीमहावीर स्वामीके दर्शन किये । हृदयमे बड़ा आह्लाद उत्पन्न हुआ। एक सीधी साधी वेदिका पर भगवान् महावीर स्वामीकी विशालकाय शुभ्र मूर्ति विराजमान की गई है। सायंकालके समय निकेतनमे उत्सव हुआ। कई प्रोफेसर आये। सानन्द छात्रावासका उद्घाटन हुआ। प्रथम वैशाख कृष्णा १४ सं० २०१० को प्रातःकाल ७ बजे चलकर स्वाद्वाद विद्यालय आ गये। यहीं पर भोजन हुआ। ३ बजेसे विद्यालयका वार्षिक उत्सव हुआ। जनता अच्छी आई। कैलाशचन्द्रजीने विद्यालयका परिचय कराया । उत्सवमे ४ बजे श्रीआनन्दमयी माता भी पधारी। आप शान्तिमूर्ति हैं। सचमुच ही आनन्दमयी हैं। सबके आनन्दमें निमित्त हो जाती हैं । उत्सव
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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