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बनारस और उसके अंचलमें प्रथम वैशाख कृष्ण ६ सं० २०१० को प्रातःकाल ३ मील चलकर भेलूपुर आ गये। यह स्थान हमारा चिर परिचित स्थान था। यहीं वाईजी रहती थीं और यहीं पर रहकर हमने बहुत दिन विद्याका अभ्यास किया था। उस समय यहाँ १ शान्तिप्रिय नामक ब्रह्मचारी भी रहते थे जो प्रबल शक्तिशाली थे। यहाँ २ मन्दिर हैं-एक नीचे सड़कके समीप और १ ऊपर। मुन्दर उद्यान है। मूर्तियाँ अत्यन्त मनोज्ञ हैं। ऊपरका मन्दिर कोलाहलसे अतीत अत्यन्त शान्तिपूर्ण है। श्री राजकृष्णजीके यहाँ थाहार किया। एक दिन तथा एक रात्रि यही निवास किया।
दूसरे दिन प्रातःकाल चलकर स्याहाद विद्यालय आगये। सूर्योदयका समय था । गंगाके उस पार दूर क्षितिजमे सूर्यरी सुनहली आमा प्रकट होकर गङ्गाके निर्मल वारिको रक्त-चीन बना रही थी। विस्तृत छतके ऊपर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का सुन्दर मन्दिर है। उसकी शिखरपर सूर्यकी मनोहर किरण पर रही। बत परसे सूर्योदयका दृश्य बड़ा सुन्दर जान पड़ता था। म्यादार विद्यालयमें पहुँचते ही पिछले जीवनकी स्मृति नवीन होगट। यापा भगीरयजी तथा स्व० सेठ माणिकचन्द्रजी श्रादिरा FARAT आया जिनकी कि उपस्थितिमें बड़े समारोह माय जेट नही । १९६२ में उन म्याहार विद्यालयरा नाटन गया था। गुरु अम्बादामजी शास्त्रीसमरा ग्रानंहीजदय नगदगया ! जिम ममय अन्य प्रारा विद्वानाने उनमायांस