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बनारसकी ओर
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दूसरे दिन प्रातः ४ मील चल कर महाराजगंजकी संस्कृत पाठशालामे निवास किया। यहाँ पर जमनादास पन्नालालजीके नाती आये और उन्हींके यहाँ आहार हुआ। मध्यान्ह कालमे हुई चर्चाका सार यह निकला कि जो आत्माको पवित्र बनानेके लिये कलुषताका त्याग करना चाहते हैं उन्हें उचित है कि अपनी परिणति मायाचारसे रक्षित रक्खें। गर्मीकी बहुलतासे अब संध्याकालका भ्रमण कष्टकर होने लगा अतः यहीं पर रात्रि व्यतीत की। दूसरे दिन प्रातःकाल ५ मील चलकर राजमार्गस्थ रूपापुरके शिशुपाठालयमे निवास किया। यहीं पर भोजन किया। यहाँ स्याद्वाद विद्यालयके २ छात्र आये। मंत्रीजीने उन्हें भेजा था। यहाँसे २ मील दूरीपर मिर्जासराय है वहींपर जानेका विचार हुआ। ___ 'प्रातःकाल ५ मील चल कर राजातालाब पर भोजन हुआ। यहाँ दिल्लीसे राजकृष्ण तथा उनकी धर्मपत्नी आई। उन्हींके यहाँ भोजन हुआ। बनारससे कई छात्र महोदय आये। यहीं पर श्री १०८ विजयसागरजी मुनियुगल, २ क्षुल्लक तथा २ ब्रह्मचारी भी आये। शान्तपरिणामी हैं परन्तु विजयसागरजीके नेत्रों की ज्योति बहुत कम हो गई है तथा वृद्ध भी अधिक हैं अतः उन्हें चलनेका कप्ट होता है। फिर भी आजकलके युवाओंकी अपेक्षा शक्तिशाली हैं। संध्याकालमे ४ मील चल कर भास्करके उपवनमें १ कूपके ऊपर निवास किया। यहाँ १ शिवालय है। पुजारीकी आज्ञासे उसीमें ठहर गये। पुजारी भद्रस्वभावका है । जैसा आतिथ्य सत्कार ये लोग करते हैं वैसा हम लोगोंमे नहीं है। हम लोग तो अन्य लोगोंको मिथ्यादृष्टि वाक्यका उपयोग कर ही अपने आपको कृतकृत्य मान लेते हैं। संध्याकाल यहाँसे चल कर श्री बनारसीदासजीके उपवनमें ठहर गये। रात्रि सुखसे वीती। यहाँसे बनारस केवल ३ मील दूर है।