________________
मेरो जीवन गाथा मूल उपदेश तो यह है कि स्वपरका भेदज्ञान प्राप्त कर विपय कपायसे निवृत्त होओ। शास्त्रप्रवचनोंमे यही वात प्रतिदिन कही जाती है परन्तु अमलमे नहीं लाई जाती इसलिये वक्ताके हाथ केवल कहना रह जाता है और श्रोताके हाथ सुनना । प्रथम वैशाख वदी को यहाँसे चलना था परन्तु मोटर द्वारा दुर्घटना हो गई जिससे रुकना पड़ा। मनमें विचार आया कि यदि यह परिकर साथ न होता तो व्यर्थका संक्लेश न उठाना पड़ता। इस दुर्घटनाके कारण मिर्जापुरमे २ दिन और रुकना पड़ा। वार वार विचार होता था कि अतिशय दुर्लभ मनुष्य जीवन पाकर भी मैंने इसका उपयोग नहीं किया । मानव जीवन सकल योनियों में श्रेष्ठ है। इस जीवनसे ही मनुष्य जगत्के विकृत भावोंसे रक्षित होकर स्वभाव परिणविका पात्र होता है। अगले दिन श्री सुमतिलालजी मंत्रीके यहाँ आहार हुआ। आप बहुत ही सरल प्रकृतिके मनुष्य हैं। स्याद्वाद विद्यालयका कार्य इनहीके द्वारा चल रहा है। यह एक सिद्धान्त है कि जिस संस्थाका संचालक निर्मल परिणामी होता है वही संस्था सुचारुरूपसे चलती है। आप उन महापुरुषोमेसे हैं जो कार्य कर नाम नहीं चाहते हैं।
प्र. वैशाख वदी ३ सं० २०१० को यहाँसे संध्याकाल चलकर चिलीके उपवनमे ठहर गये । रात्रि सानन्द व्यतीत हुई। प्रातःकाल ४३ मील चल कर एक धर्मशालामें ठहर गये। श्री हरिश्चन्द्रने सानन्द भोजन कराया। भोजन भक्तिसे दिया । अत्यन्त स्वादिष्ट था। हम लोग उद्दिष्ट त्यागकी कयामात्र कर लेते हैं परन्तु पालन नहीं करते। उसीका फल है कि परिणामोंमें शान्ति नहीं पाती। शान्तिका मूल कारण अन्तरन अभिप्रायकी पवित्रता है। हम लोग वाह्य त्यागसे ही अपनी परिणतिको उत्तम मानते हैं यह सर्वथा अनुचित है । रात्रि यहीं विताई ।