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बनारस की ओर
थी कि आत्मा और पुद्गल स्वतन्त्र द्रव्य हैं । इनमे जो परिणमन होता है उसके आत्मा और पुद्गल स्त्रतन्त्र कर्ता हैं। एक दूसरेके परिणमनमे निमित्त कारण हैं । जैसे जब रागकर्मका विपाक होता है तब जिस आत्मा के साथ रागकर्मका सम्बन्ध है वह आत्मा रागरूप परिणमन करता है तथा उसी काल कार्मणवर्गरणा ज्ञानावरणादिरूप हो जाता है । प्रवचनके बाद यहीं पर भोजन हुआ 1 सायंकाल चलकर एक वनमे ठहर गये । आगामी दिन प्रातःकाल ३ मील चलकर १ मन्दिरमें निवास किया । मन्दिर बहुत रम्य था। यहीं पर भोजन किया । यहाँसे मिर्जापुर ६ मील है । रात्रि भी यहीं व्यतीत की । यहाँ पर बनारससे प० कैलाशचन्द्रजी, मंत्री सुमतिलालजी, अधिष्ठाता हरिश्चन्द्रजी तथा कोपाध्यक्षजी आये । आप लोग ४ घंटा ! यहाँ पर रहे । अनन्तर मन्त्रीजीको त्याग सब चले गये। प्रातःकाल ३ मील चलकर मिर्जापुरके बगीचामे ठहर गये । यहाँ एक सुन्दर कूप तथा अखाड़ा है । ठहरनेके लिये वंगला है । एक शिवालय भी है। चारो ओर रम्य उपवन है । यहीं पर भोजन हुआ । यहाँ मिर्जापुरसे कई मनुष्य आ गये । मध्यान्हकी सामायिकके बाद मिर्जापुर गये । लोगोंने उत्साहसे स्वागत किया ।
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दूसरे दिन चैत्र शुक्ला १३ सं० २०९० होनेसे महावीर जयन्तीका उत्सव था । बनारस से पं० महेन्द्रकुमारजी तथा कैलाशचन्द्रजी आ गये । प्रात काल पं० महेन्द्रकुमारजीने शास्त्र प्रवचन किया। आपने यह भाव प्रकट किया कि सप्त तत्त्व जाने बिना मोक्षमार्गका निरूपण नहीं हो सकता ! रात्रिको आमसभा हुई। उसमें श्री महावीर स्वामीके जीवनचरित्रका वर्णन श्री पं० कैलाशचन्द्रजीने उत्तम रीति से किया । पं० महेन्द्रकुमारजीका भी उत्तम व्याख्यान हुआ । कुछ हमने भी कहा । एक दिन प्रातःकाल बड़े मन्दिर मे प्रवचन हुआ । उपस्थिति अच्छी थी । जैनधर्मका