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मेरी जीवन गाया
है । उसमें २७ करोड़ राम नाम लिखे गये हैं । यहाँसे सायंकाल चल कर वकनाके मन्दिरमें ठहर गये ।
प्रातःकाल ५ मील चल कर कुरहीमें ठहर गये । एक गृहस्थने बहुमान पूर्वक स्थान दिया । यहाँ सतनासे २० आदमी आये । श्री ऋषभकुमारकी माँके यहाँ आहार हुआ । प्रायः सबके परिणाम निर्मल थे । सवको कल्याणकी चाह है परन्तु जिन कारणोंसे कल्याण होता हैं उनसे दूर भागते हैं । कषायाग्नि ही प्राणी को संतप्त कर रही है । जब कषायोंका वेग आता है तत्र इस जीवको सुध बुध नहीं रहती । जिस निमित्त को पाकर क्रोध उत्पन्न हुआ उस निमित्तको मिटानेका प्रयत्न करता है पर यह उसका वीज हमारी ही आत्मामे विद्यमान है यह नहीं विचारता ।
यहाँ २ मील चल कर सायंकाल कृषिकार्यालय में आ गये । रात्रभर आनन्दसे रहे । दूसरे दिन प्रातःकाल ५ मील चल कर वेलापुर आ गये और यहाँ के स्कूलमें ठहर गये । यहीं पर भोजन किया। सतना से श्री ऋषभकुमारकी मां आदि आये । साथमें पं० पन्नालालजी धर्मालंकार और चौधरी पन्नालालजी मैनेजर तेरापंथी कोठीके थे। मार्गमे इन महानुभावोंके समागमसे अत्यन्त शान्ति रहती है । अन्तिम शान्ति नहीं, औपाधिक शान्तिका ही लाभ होता है । अन्तिम शान्ति तो वह है जिससे फिर अशान्ति न हो | यह शान्ति इच्छाके अभाव में होती है । दूसरे दिन प्रातःकाल ८ वजे रीवां आ गये । धर्मशालामें ठहर गये । मन्दिरजीमें श्री शान्तिनाथ भगवान् के दर्शन किये। मूर्ति बहुत ही सुन्दर है । इसके दर्शनसे हृदयमे यह भावना हुई कि शान्तिका मार्ग तो वाह्याभ्यन्तर परिग्रहका त्याग है । इसमें बाह्य परिका त्याग तो सरल है परन्तु आभ्यन्तर परिग्रहका त्याग होना अनि कठिन है । सबसे कठिन तो परको निज माननेका त्याग करना है ।
स्नान कर