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________________ बनारसकी ओर शरीर की कथा छोड़ो, स्त्री पुत्र बान्धवको भी पृथक् करना कठिन है। हम सबसे भिन्न हैं."यह पाठ प्रत्येक व्यक्ति पढ़ता है परन्तु भीतरसे उन्हे छोड़ता नहीं। दूसरे दिन प्रातःकाल बाजारके मन्दिर में प्रवचन हुआ। वहीं पर आहार हुआ। तदनन्तर धर्मशालामें आ गये । सामायिकके बाद एक वृद्ध जिनकी आयु ८४ वर्षकी थी आये। और तत्त्वज्ञानकी उपयोगी चर्चा करते रहे। आपका पुत्र पुलिस विभागमें जनरल इन्सपेक्टर है। आप जैनधर्मकी चर्चासे प्रसन्न हुए। रीवाँ विन्ध्यप्रान्तकी राजधानी है। जैनियोंके घर भी अच्छे हैं। यहाँसे ३ बजे चलकर २३ मीलके बाद १ स्कूलमे ठहर गये। उक्त वृद्ध महाशय हमारे साथ मार्गमें १ मील तक आये । यहाँ टीकमगढ़से प० नन्हेलालजी प्रतिष्ठाचार्य आये। आप बहुत ही सरल स्वभावके हैं । आपने वादा किया कि हम ईसरी आवेंगे। अगले दिन प्रातःकाल ६ मील चल कर रामऊनके मिडिल स्कूलमें निवास किया। स्कूलके अन्त भागमें आम्र वन और कूर था। उसी स्थान पर रीवाँसे आये हुए:५ आदमी ठहरे हुए थे। यहीं पर बनारससे श्री पं० कैलाशचन्द्रजी तथा व हरिश्चन्द्रजी आये । आप लोगोंके आनेसे विशेष स्फूर्ति आ गई। आहार यहीपर हुआ। चैत्र कृष्णा १३ को ५ मील चल कर विलवाके उद्यानमे ठहर गये। यहाँ रीवाँसे श्री कपूरचन्द्रजीका चौका आया था। वहीं पर आहार हुआ। मध्याह्नके उपरान्त यहाँसे ३ मील चलकर मनगुवाँकी पुलिस चौकी पर निवास किया । स्थान सुरम्य था, दिनकी थकावटसे जल्दी सो गये अतः रात्रिके १ बजे निद्रा भग्न हो गई। छहढालाकी छटवीं ढालका पाठ किया परन्तु पाठ करना अन्य बात है, हृदयमे शान्तिका आना अन्य बात है। शान्तिका लाभ कषायके अभावमें है। शान्तिका पाठ पढ़ना प्रत्येक व्यक्तिको आता है किन्तु भीतरसे शान्तिका होना कठिन है।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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