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बनारसकी ओर
४२६ उपयोगमे यह आया कि इस सर्व उपद्रवके निमित्त कारण तुम थे। न तुम होते न यह समुदाय एकत्रीभूत होता। आगममें लिखा है कि क्षुल्लक मुनिके समागममे रहता है पर तूं उसकी अवहेलनाकर इस परिकरके साथ भ्रमण कर रहा है यह उसी अवहेलनाका फल है ।
सतना अच्छा शहर है। जैनियोंकी सख्या अच्छी है। प्रायः सम्पन्न हैं। एक मन्दिर है। पास ही धर्मशाला भी है । श्री शान्तिनाथ भगवान्की प्राचीन मूर्ति है। एक जैन स्कूल भी है। प्रातःकाल समयसार पर प्रवचन हुआ। उपस्थिति अच्छी थी। प्रवचनके बाद पं० महेन्द्रकुमारजीका व्याख्यान हुआ। व्याख्यानका विषय रोचक था। तृतीय दिन श्री पं० जगन्मोहनलालजी भी आ गये । आज पं० महेन्द्रकुमारजीका प्रवचन और पं० जगन्मोहनलालजीका भाषण हुआ । खजराहा क्षेत्रकी व्यवस्थापक समितिका निर्माण हुआ। एक दिन प्रवचनके वाद यहाँकी पाठशालाके अर्थ चन्दा हुआ। लगभग १४००० चौदह हजार रुपया आ गये। लोग उदार हैं-आवश्यकतानुसार धन देते हैं परन्तु व्यवस्थाके अभावमे कार्य सिद्ध नहीं होता। रुपयाका मिलना कठिन नहीं किन्तु कार्यकर्ताका मिलना कठिन है। फाल्गुन कृष्ण १३ को सतना आये थे और चैत्र कृष्ण ६ को यहाँसे निकल पाये ।
सतनासे ३ बजे चल कर ५ मीलके वाद माधवगढ़के स्कूलमें ठहर गये। स्थान अत्यन्त स्वच्छ था। दूसरे दिन प्रातःकाल ५ मील चल कर रामवन आये । यहाँ पर १ बाग है । उसीमें १ कूप है। १ छोटीसी टेकरी पर १ कुटिया बनी है । कुटियाके नीचे तलघर है। उसमें अच्छा प्रकाश है। उण्णकालके लिये बहुत उपयोगी है। कुटियामे ३ तरफ खिड़कियों और १ तरफ उत्तर मुख दरवाजा है। दरवाजाके आगे १ दहलान है। जिसमे १० श्रादमी धर्न साधन कर सकते हैं। ३ मील लम्बा चौडा बाग है । हनूमानका १ मन्दिर