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मेरी जीवन गाया चल कर नरौरा ग्रामकी सड़कके किनारे १ कुर्मीकी धर्मशालामें ठहर गये । समय सानन्द व्यतीत हुआ।
यहाँसे ४३ मील चलकर वरइया ग्रामळे वगीचामें ठहर गये । सतनावाले श्री ऋषभकुमारकी माँने आहार दिया। यहाँसे ३ मील चलकर एक कृषकके यहाँ रह गये। रात्रिमे श्री नाथूरामजी शास्त्रीने व्याख्यान दिया। जनता ग्रामीण थी। सबको धर्म पिपासा है परन्तु योग्य उपदेष्टा नहीं मिलते अतः इनकी प्रवृत्तिका सुधार नहीं होता । प्रातःकाल ३ मील चल कर अमरपाटन आये। पं० जगन्मोहनलालजी भी आ गये। आपने स्नानादिसे निवृत्त हो प्रवचन किया। पश्चात् हमने भी कुछ कहा । यहाँ पर २० वर जैनियोंके हैं। २ मन्दिर हैं। १ प्राचीन मूर्ति बहुत ही मनोज है। १ पाठशाला भी है जिसमें जैन अजैन सब मिलकर १०० छात्र है। यहाँ पर जनताने भोजनाच्छादन आदिमें जो व्यय हो उस पर एक पैसा रुपया दानमें निकलना स्वीकृत किया। श्री हजारीलाल वहोरेलालजी सिंघईने आहारके समय कटनीकी पाठशालाको ५०१) देना स्वीकृत किया तथा स्वागतमें वीसों रुपयेके पैसे गरीबोंको वितरण कर दिये । मध्यान्हके वाद यहाँसे चलकर ४३ मील वाद कतपारीके वागमें ठहर गये। यहीं पर भोजन हुआ। यहाँसे ५ मील चलकर इटवा नदीके तीर धर्मशालामें ठहर गये। यहाँ पर श्री हनुमानजीका मन्दिर है। स्थान रम्य है परन्तु कोई पुजारी नहीं रहता। रात्रिको सुख पूर्वक सोया किन्तु १ वजे श्री नीरजने खबर दी कि मोटर लौट जानेसे चम्पालालजी सेठी आदिको चोट लग गई। सुनकर चित्तमें वहुत खेद हुआ। प्रातःकाल ६३ वजेसे चलकर ६ वजे १ बगीचामें आये । यहाँ पर भोजन किया। तदनन्तर सामायिकादिसे निवृत्त हो २ बजे चल दिये और ५ वजे मतना आ गये। श्री चम्पालालजी आदिको देखा, वहुत चोट लगी थी।