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________________ ४२६ मेरी जीवन गाथा संस्थाओंका संक्षिप्त विवरण सुनाया। लोगोंने यथाशक्ति संस्थाओंकी सहायता की । वहुत सहायताकी संभावना थी परन्तु आज कल लोग एक काम नहीं करते । एक उत्सबसे अनेक कार्योंका आयोजनकर लेते हैं। फल एकका भी पूर्ण नहीं हो पाता । कुण्डलपुर क्षेत्रकी अपील हुई तो उसे भी सहायता मिल गई। पण्डित कैलाशचन्द्रजीका भी व्याख्यान हुआ। यहाँ ५ दिन रहना पड़ा। यहाँ पर जवलपुरसे बहुत अधिक मनुष्य आये। सबका अत्यन्त आग्रह था कि जबलपुर चलिये परन्तु हम अपने निश्चयसे विचलित नहीं हुए। बनारसकी ओर श्री चम्पालालजी सेठी गयावाले मोटर लेकर पहले ही आ गये थे। मोटरमे साथके लोगोंका सामान जाता था तथा उसके द्वारी आगामी निवासकी व्यवस्था हो जाती थी। श्री चम्पालालजी व्यवस्थामें बहुत पटु हैं, अन्तरङ्गसे स्वच्छ हैं। फाल्गुन कृष्णा १४ को संध्याकाल कटनीसे ४ मील चलकर चाकामें ठहर गये। प्रातः ३ मील चलकर कैलवारके जंगलमें एक बंगला था उसमे ठहर गये। वहीं पर भोजन हुआ। मध्यान्हके बाद यहाँसे २ मील चलकर टिकरवारा ग्राममे ठहर गये। आनन्दसे रात्रि वीती। यहाँ पर रात्रिको समयसारका निर्जराधिकार पढ़कर परम प्रसन्नता हुई । निर्जरा प्राणी मात्रके होती हैं परन्तु नवीन कर्म वन्धन होनेसे गजस्नानवत् उसका कोई मूल्य नहीं होता । यहाँसे ३ मील चलकर १ स्कूलमें ठहर गये। इस ग्रामका नाम भकोही था । यहाँ पर कटनीसे बहुत मनुष्य आये । हृदयमें प्रेम था। सब कुछ होना सरल है परन्तु प्रेम पर विजय पाना अति दुष्कर है । यहाँसे ३ मील
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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