________________
मेरी जीवन गाथा
प्राचीन दस्सा शुद्धि आदि । जिन पर उपस्थित विद्वानोंमे पक्ष विपक्षको लेकर काफी चर्चा हुई परन्तु अन्तमें निर्णय कुछ नहीं हो सका। यदि विद्वान् परस्परका मनोमालिन्य त्याग किसी कार्यको उठावें तो उनसे वह शक्ति है जिसे कोई रोकने के लिये समर्थ नहीं परन्तु परस्परका मनोमालिन्य उनकी शक्तिको कुण्ठित किये हुए है । 'विश्व शान्ति और जैनधर्म' इस विषय पर निबन्ध लिखानेका विचार स्थिर हुआ । जैन संघमे श्री पं० राजेन्द्रकुमारजी अत्यन्त उत्साही और कर्मठ व्यक्ति हैं । संघका वर्तमान रूप उन्हीं के पुरुपार्थका फल है । एक दिन आपके यहाँ भोजन हुआ आपने स्याद्वाद विद्यालय वनारसको ५०१ ) देना स्वीकृत किया । इसी तरह एक दिन सेठ भगवानदासजीके यहाँ आहार हुआ । सेठानी श्री वच्छराजजी लाडनूँवालोंकी पुत्री हैं । इन्होंने भी स्याद्वाद विद्यालयको २०००) देना अंगीकार किया । सेठ भगवानदासजी सौम्य व्यक्ति हैं | आप नवयुवक होते हुए भी सज्जनतासे भरे हुए हैं । टोंग्याजी भी यहाँ पर प्रसिद्ध व्यक्ति हैं । आपके प्रबन्धसे यहाँ रथयात्रा महती प्रभावना के साथ हुई। वाहरके भी मनुष्य आये । तीन दिन तक अच्छी चहल पहल रही । अनन्तर मेला विघट गया । यहाँ श्री विनयकुमारजी 'पथिक' संघमें रहते हैं जो जात्या ब्राह्मण हैं तथा कविता अच्छी करते हैं कविता करनेकी पद्धति प्रायः प्रत्येकको नहीं आती, यह भी एक कता है । एकान्त चिन्तनके समय निम्नाङ्कित विचार उत्पन्न हुए
२८
'लोगोंमे धर्मके प्रति महान् श्रद्धा है किन्तु धर्मात्माओं का अभाव है। लोग प्रतिष्टा चाहते हैं परन्तु धर्मको आदर नहीं देते । मोहके प्रति आदर है धर्मके प्रति आदर नहीं । धर्म आत्मीय वस्तु है उसका आदर विरला ही करता है । जो आदर करता है वही संसारसे पार होता है ।'