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कटनी
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दमोहसे हिंडोरिया तथा पटेरामें ठहरते हुए श्री अतिशय क्षेत्र कुण्डलपुरजी पहुँच गये । बड़ा रमणीय क्षेत्र है । कुण्डलाकार पर्वत पर सुन्दर मन्दिर बने हैं । नीचे तालाब है । उसके समीप भी अनेक मन्दिर बने हैं। ऊपर श्री भगवान् महावीर स्वामीकी सातिशय विशाल प्रतिमा है । मेलाका समय था । लगभग ४ सहस्र आदमी थे । मेला सानन्द सम्पन्न हुआ । पं० जगन्मोहनलालजी के पहुँच जानेसे अच्छी प्रभावना तथा क्षेत्र को अच्छी आय हुई। लोगों में जागृति हुई । जनता धर्मपिपासु थी । एक दिन पर्वतपर स्थित श्री महावीर स्वामीके दर्शन किये । चित्तमें असीम हर्ष उत्पन्न हुआ । यहाँसे बीच के कई स्थानोंमें ठहरते हुए फाल्गुन कृष्णा १० को कटनी आ गये । वीचका मार्ग पहाड़ी मार्ग था, अतः कष्ट हुआ परन्तु यथास्थान पहुँच गया । कटनीकी जनताने स्वागत किया। दूसरे दिन प्रातः काल मन्दिरमे प्रवचन हुआ । समयसार ग्रन्थ सामने था इसलिये उसीका मङ्गलाचरण कर प्रवचन प्रारम्भ किया । मैंने कहा
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श्री कुन्दकुन्द भगवान् ने ८४ प्राभृत बनाये हैं । उनमें कतिपय अव भी प्रसिद्ध हैं । उन प्रसिद्ध प्राभृतोंमे समयसारकी बहुत प्रसिद्धि है । यद्यपि श्री स्वामीने जो कुछ लिखा है वह सभी मोक्षमार्गका पोषक है परन्तु कई व्यक्ति समयसारको ही बहुत महत्त्व देते हैं यह व्यक्तिगत विचार है । इसके हम निवारक कौन होते हैं ? फिर भी हमारी बुद्धिसे जो आया उसे स्वीय अभिप्राय के अनुकूल कुछ लिखते हैं ।
श्रीस्वामीने प्रथम गाथामे सिद्ध भगवान्को नमस्कार कर यह प्रतिज्ञा की कि मैं समयप्राभृतका परिभाषण करूँगा और यह भी लिखा कि श्रुतकेवली भगवान् ने जैसा कहा वैसा करूँगा । उससे यह योतित होता है कि वर्तमानमे हमारी आत्मामे सिद्ध पर्याय