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________________ कटनी गमीरिया से ४ मील चलकर वमोरीमे आहार किया, तदनन्तर सानोधा और पड़रिया ठहरते हुए आगे बढ़े। पड़रियासे ३ मील चलकर १ कूप पर भोजन हुआ। स्थान अति रम्य और सुखद् था। ऐसे स्थानों पर मनुष्योंको स्वाभाविक निर्मलता आ जाती है परन्तु हम लोग उन परिणामोंको यों ही व्यय कर देते हैं। यहां पर ईसरीसे श्री सुमेरुचन्द्र जी भगत आ गये । आप बहुत ही विलक्षण प्रकृतिके हैं-प्रायः सवकी समालोचना करनेमें नहीं चूकते । अस्तु, उनकी प्रकृति है उसे हम निवारण नहीं कर सकते । अच्छा तो यही था कि इसके विरुद्ध वे अपनी समालोचना करते। यहां से गोरा, सासा, शाहपुर. टड़ा आदि स्थानोंमे ठहरते हुए माघ शुक्ला ११ को दमोह आ गये। लोगोंने सम्यक् स्वागत किया। प्रातःकाल धर्मशालाके विशाल भवनमे प्रवचन हुआ । एक सहस्र संख्या एकत्र हुई। लोगोंकी भीड़ देखकर लगने लगता है कि प्रायः सर्व लोग धर्मके पिपासु हैं परन्तु कोई इन्हें निरपेक्षभावसे धर्मपान करानेवाला नहीं है । पं० जगन्मोहनलालजी आ गये। आपने अपने प्रवचनमें संगठन पर बहुत वल दिया परन्तु लाभांश कुछ नहीं हुआ । केवल वाह वाहमें व्याख्यानका अन्त हो गया। गल्पबादकी बहुलतासे संसार व्यामूढ़ हो रहा है। यहीं पर श्री १०८ मुनि आनन्दसागर जी भी थे। उनके दर्शन करनेके लिए गये। सेठ लालचन्द्रजीसे भी वार्तालाप हुआ! आप विद्वान् हैं, धनी हैं, परन्तु समाज आपसे लाभ लेना नहीं जानती।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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