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पर्व प्रवचनावली
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आँखो कीचड़ लग रहा है, कोई चीं कर रहा है, कोई पीं कर रहा है । ऐसी संतानसे क्या राज्यकी रक्षा हो सकती है ? हम तो जाति के ब्राह्मण हैं । हमारे इन बच्चोंको राज्य तो करना नहीं है, सिर्फ अपना पेट पालना है सो येन केन प्रकारेण पाल ही लेंगे । आपके ये दोनो बच्चे तीन तीन साल के अन्तरसे हुए हैं और ये हमारे बच्चे एक एक वर्षके अन्तरसे हुए हैं । दोनों की सूरत मिलान कर लीजिये । राजा ज्योतिपीके उत्तरसें निरुत्तर हो गया तथा उसकी दूरदर्शिता पर बहुत प्रसन्न हुआ । यह तो कथा रही पर मैं आपको एक प्रत्यक्ष घटना सुनाता हूँ । मैं पं० ठाकुरदासजी के पास पढ़ता था । वह वहुत भारी विद्वान थे । उनकी स्त्री दूसरे विवाहकी थी पर उसकी परिणतिकी बात हम आपको क्या सुनावें ? एक वार पण्डित जी उसके लिए १००) सौ रुपयेकी साड़ी ले आये । साड़ी हाथ मे लेकर वह पण्डित जी से हती है - पण्डित जी ! यह साड़ी किसके लिये लाये हैं ? पण्डितजीने कहा कि तुम्हारे लिये लाया हूँ । उसने कहा कि अभी जो साड़ी मैं रोज पहिनती हॅू वह क्या बुरी है ? बुरी तो नहीं है पर यह अच्छी लगेगी पण्डितजीने कहा । यह सुन उसने उत्तर दिया कि मै अच्छी लगने के लिए वस्त्र नहीं पहनना चाहती | वस्त्रका उद्देश्य शरीरकी रक्षा है, सौन्दर्य वृद्धि नहीं और सौन्दर्य वृद्धि कर मैं किसे आकर्षित करू ं ? आपका प्रेम मुझपर है यही मेरे लिये बहुत है। उसने वह साड़ी अपनी नौकरानीको दे दी और कह दिया कि इसे पहिन कर खराब नहीं करना । कुछ वट्टे से वापिस होगी सो वापिस कर और रुपये अपने पास रख, समय पर काम आयेंगे। जब पण्डितजीके २ सन्तान हो चुकीं तब एक दिन उसने पण्डितजी से कहा कि देखो अपने दो संतान एक पुत्र और एक पुत्री हो चुकीं । अब पापका कार्य बन्द कर देना चाहिये ।
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