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मेरी जीवन गाथा किया जाय तो बच्चे भी पुष्ट हों तथा माता पिता भी स्वस्थ रहे।
आज तो स्त्रीके दो तीन बच्चे हुए नहीं कि उसके शरीरमे बुढापाके चिह्न प्रकट हो जाते हैं। पुरुपके नेत्रो पर चश्मा आजाता है और मुंहमे पत्थरके टॉत लगवाने पड़ते हैं। जिस भारतवर्ष पहले टी. वी. का नाम नहीं था वहाँ आज लाखोंकी संख्यामे इस रोगसे ग्रसित है। विवाहित स्त्री पुरुषोंकी बात छोड़िये, अत्र तो अविवाहित बालक बालिकायें भी इस रोगकी शिकार हो रही हैं। इस स्थितिम भगवान् ही देशकी रक्षा करें। एक राजा ज्योतिष विद्याका बड़ा प्रेमी था। वह मुहूर्त दिखाकर ही स्त्री समागम करता था। राजाका ज्योतिषी तीन सालमे एक वार मुहूर्त निकाल कर देता था। इससे राजाकी स्त्री बहुत कुढ़ती रहती थी। एक दिन उसने राजासे कहा कि ज्योतिषी जी आपको तो तीन साल बाद मुहूर्त शोध कर देते हैं और स्वयं निजके लिए चाहे जब मुहूर्त निकाल लेते हैं । उनका पोथी-पत्रा क्या जुदा है ? देखो न, उनके प्रति वर्ष वच्चे उत्पन्न हो रहे हैं । स्त्रीकी बात पर रानाने ध्यान दिया और ज्योतिषीको बुलाकर पूछा कि महाराज | क्या आपका पोथी-पत्रा जुदा है । ज्योतिषीने कहा-महाराज | इसका उत्तर कल राजसभामे दूंगा। दूसरे दिन राजसभा लगी हुई थी । सिंहासन पर राजा आसीन थे। उनके दोनों ओर तीन तीन वर्षके अन्तरसे हुए दोनों बच्चे सुन्दर वेष-भूपामे बैठे थे। राजसभामे ज्योतिषी जी पहुंचे। प्रति वर्षे उत्पन्न होनेवाले वच्चोमेसे वे एकको कन्धेपर रखे थे, एकको वगलमे दावे थे और एकको हाथसे पकड़े थे। पहुँचने पर राजाने उत्तर पूछा। ज्योतिपीने कहा-महाराज | मुहूर्तका वहाना तो मेरा छल था। यथार्थ बात यह है कि आप राजा हैं। आपकी संतान राज्यकी उत्तराधिकारी है। यदि आपके प्रतिवर्ष संतान पैदा होती तो वह हमारे इन बच्चोंके समान होती । एकके नाक बह रही है, एककी