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________________ पर्व प्रवचनावली. ४०५ पाप पाप ही है। इसे जो भी करेगा वह दुःख उठावेगा। ब्रह्मचारी मनुन्यको अपने रहन, वेषभूपा आदि सब पर दृष्टि रखना पड़ती है। वाह्य परिकर भी उज्वल बनाना पड़ता है क्योंकि इन सवका असर उसके ब्रह्मचर्यपर अच्छा नहीं पड़ता। आप भगवान् महावीर स्वामीके संबोधे हुए शिष्य हैं। भगवान् महावीर कौन थे ? वाल ब्रह्मचारी ही तो थे। अच्छा जाने दो उनकी वात, उनके पहले भगवान् पार्श्वनाथ कैसे थे? वे भी वालब्रह्मचारी थे और उनके पहले कौन थे ? नेमिनाथ, वे भी ब्रह्मचारी थे। उनका ब्रह्मचर्य तो और भी आश्चर्यकारी है। बीच विवाहमें विरक्त हो दीक्षा उन्होंने धारण की थी। इस तरह एक नहीं तीन तीन तीर्थंकरोंने आपके सामने ब्रह्मचर्यका माहात्म्य प्रकट किया है। हम अपने आपको उनका शिष्य बतलाते हैं पर ब्रह्मचर्यकी ओर दृष्टि नहीं देते ! जीवन विलासमय हो रहा है और उसके कारण सूरतपर वारह बज रहे हैं फिर भी इस कमीको दूर करनेकी ओर लक्ष्य नहीं जाता। कीड़े मकोड़ेकी तरह मनुष्य संख्यामें वृद्धि होती जा रही हैं। बल-वीर्यका अभाव शरीरमे होता जा रहा है फिर भी ध्यान इस ओर नहीं जाता । एक बच्चा माँके पेटमें और एक अञ्चलके नीचे है फिर भी मनुष्य विषयसे तृप्त नहीं होता । पशुमे तो कमसे कम इतना विवेक होता है कि वह गर्भवती स्त्रीसे दूर रहता है पर हाय रे मनुष्य ! तूं तो पशुसे भी अधम दशाको पहुँच रहा है। तुझे गर्भवती स्त्रीसे भी समागम करनेमें संकोच नहीं रहा। इस स्थिति में जो तेरे सन्तान उत्पन्न होती है उसकी अवस्थापर भी थोड़ा विचार करो। किसीके लीवर बढ़ रहा है तो किसीके पक्षाघात हो रहा है, किसीकी आँख कमजोर है तो किसीके दाँत दुर्वल हैं। यह सर्व क्यों है ? एक ब्रह्मचर्यके महत्त्वको नहीं समझनेसे है। जब तक एक बच्चा माँका दुग्धपान करता है तब तक दूसरा वच्चा उत्पन्न न
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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