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मेरी जीवन गाथा
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ब्रह्मचर्य ही है । ब्रह्मचर्यका सबसे बड़ा बाधक कारण कुसङ्गति है । कुसंगतिके चक्रमे पड़कर ही मनुष्य बुरी आदतोंमे पड़ता है इस लिये ब्रह्मचर्यकी रक्षा चाहनेवाले मनुष्यको सर्व प्रथम कुसंगति से वचना चाहिये। शुभचन्द्राचार्यने वृद्ध सेवाको ब्रह्मयका साधक मानकर ज्ञानार्णवमे इसका विशद वर्णन किया है । यहाँ जो उत्तमगुणों सहित हैं उन्हें वृद्ध कहा है । केवल अवस्थासे वृद्ध मनुष्योंकी यहाँ विवक्षा नहीं है । मनुष्य के हृदयमें जब दुर्विचार उत्पन्न होते हैं तब उन्हें रोकने के लिये लज्जा गुण बहुत कुछ प्रयत्न करता है । उत्तम मनुष्योंकी संगतिसे लज्जागुणको बल मिलता है । और वह मनुष्यों के दुर्विचारोंको परास्त कर देता है परन्तु जब नीच मनुष्योंकी संगति रहती है तब लज्जागुण असहाय जैसा होकर स्वयं परास्त हो जाता है । हृदयसे लज्जा गई फिर दुर्विचारोंको रोकनेवाला कौन है ?
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आदर्श गृहस्थ वही हो सकता है जो अपनी स्त्रीमें संतोष रखता है | इस एकदेश ब्रह्मचर्यका भी कम माहात्म्य नहीं है । सुदर्शन सेठकी रक्षा के लिये देव दौड़े आते हैं। सीताजीके अग्निकुण्डको जलकुण्ड बनानेके लिये देवोंका ध्यान आकर्षित होता है । यह क्या है ? एक शीलव्रतका ही अद्भुत माहात्म्य है। इसके विरुद्ध जो कुशील पापमे प्रवृत्ति करते हैं वे देर सवेर नष्ट हो जाते हैं उसमें संदेहकी बात नहीं है । जिन घरोंमें यह पाप आया वे घर वरवाद ही हो गये और पाप करनेवालोंको अपने ही जीवनमे ऐसी दशा देखनी पड़ी कि जिसकी उन्हें स्वप्नमे भी संभावना नहीं थी । जिस पापके कारण रात्रणके भवनमे एक बच्चा भी नहीं बचा उसी पापको आज लोगोंने खिलौना बना रक्खा है ।
जाहि पाप रावण के छौना रह्यौ न मौना माहिं । ताहि पाप लोगनने खिलौना कर राख्यौ है |