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मेरी जीवन गाथा किन्तु परिग्रहकी आकांक्षा न होना ही सुखका कारण है । यह प्राणी मोहोदयके कारण परिग्रहको सुखका कारण मान रहा है इसीलिये रात-दिन उसीके संचयमे तन्मय हो रहा है। पासका परिग्रह नष्ट न हो जाय यह लोभ है और नवीन परिग्रह प्राप्त हो जाय यह तृष्णा है । इस प्रकार आजका मनुष्य इन लोभ और तृष्णा दोनोंके चक्रमे फंस कर दुखी हो रहा है।
जो पदार्थ जैसा है उसका उसी रूप कथन करना सत्य है । भगवान् उमास्वामीने असत्य पापका लक्षण लिखा है-'असदभिधानमनृतम्' अर्थात् प्रमादके योगसे जो कुछ असत्का कथन किया जाता है उसको अनृत या असत्य कहते हैं। इसके चार भेद हैं -जो वस्तु अपने द्रव्यादि चतुष्टय कर है उसका अपलाप करना यह प्रथम असत्य है। जैसे देवदत्तके रहने पर भी कहना कि यहाँ पर देवदत्त नहीं है। जो वस्तु अपने चतुष्टय कर नहीं है वहाँ उसका सद्भाव स्थापना द्वितीय असत्य है। जैसे जहाँ पर घट नहीं वहाँ पर कहना कि घट है। जो वस्तु अपने स्वरूपसे हे उसे पर रूपसे कहना यह तृतीय असत्य है जैसे गौको अश्व कहना । तथा पैशुन्य, हास्य, कर्कश, असमंजस, प्रलाप तथा उत्सूत्ररूप जो वचन है वह चतुर्थ असत्य है। इन चार भेदोंमे ही सब प्रकारके असत्य आ जाते हैं । इन चार भेदोंके विपरीत जो वचन हैं वे चार प्रकारके सत्य हैं। असत्य भापणके प्रमुख कारण दो हैं-एक अज्ञान और दूसरा कपाय | अज्ञानके कारण मनुष्य असत्य बोलता