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________________ ३६७ पर्व प्रवचनावली है और कपायके वशीभूत होकर कुछका कुछ बोलता है । यदि अज्ञान जन्य असत्यके साथ कपायकी पुट नहीं है तो उससे आत्माका अहित नहीं होता क्यों कि वहाँ वक्ता अज्ञानसे विवश है। ऐसा अजान जन्य असत्यवचनयोग तो आगममे वारहवें गुणस्थान तक बतलाया है परन्तु जहाँ कषायकी पुट रहती है वह असत्य आत्माके लिये अहितकारक है । संसारमे राजा वसुका नाम असत्यवादिॉमे प्रसिद्ध हो गया। उसका खास कारण यही था कि वह कषाय जन्य था। पर्वतकी माताके चक्रमे पड़ कर उसने 'अजैर्यष्टव्यम' वाक्यका मिथ्या अर्थ किया था इसलिये उसका तत्काल पतन हो गया । और वह दुर्गतिका पात्र हुआ। कपायवान् मनुष्य अपने स्वार्थके कारण पदार्थका स्वरूप उस रीतिसे कहनेका प्रयत्न करते हैं जिससे उनके स्वार्थमे वाधा न पड़ जाय । महाभारतमे एक गृद्ध और गोमायुका संवाद आया है। किसीका पुत्र मर गया, उस मृतक पुत्रको लेकर उसके परिवारके लोग श्मशानमें गये। जब श्मशानमे गये तव सूर्यास्त होनेमे कुछ विलम्ब था । उसी श्मशानमें एक गृध्र तथा एक गोमायु-शृगाल विद्यमान थे। गृध्र रातमें नहीं खाता इसलिए वह चाहता था कि ये लोग मृत बालकको छोड़कर जल्दी ही यहाँसे चले जावे तो मैं इसे खा लें और गोमायु यह चाहता था कि ये लोग यहाँ सूर्यास्त होने तक विद्यमान रहे जिससे सूर्यास्त होनेके बाद इसे गृध्र खा नहीं सकेगा तब केवल मेरा ही यह भोज्य हो जावेगा। अपने अभिप्रायके अनुसार गृध्र कहता है। अलं स्थित्वा श्मशानेऽस्मिन्गृध्रगोमायुसंकुले । कढालबहले घोरे सर्वप्राणिभयंकरे ॥ न चेह जीवितः कश्चित्कालधर्ममुपागतः। प्रियो वा यदि वा द्वेष्यः प्राणिना गतिरीदृशी ॥
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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