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मेरी जीवन गाथा
एक चित्रकार और दूसरा अचित्रकार। अचित्रकार चित्र बनाना तो नहीं जानता था पर था प्रतिभाशाली। चित्रकार बोला कि मेरे समान कोई चित्र नहीं बना सक्ता। दूसरेको उसकी गर्वोक्ति सह्य नहीं हुई अतः उसने झटसे कह दिया कि मैं तुमसे अच्छा चित्र बना सकता हूँ। विवाद चल पड़ा। अपना अपना कौशल दिखानेके लिये दोनों तुल पड़े। तय हुआ कि दोनों चित्र वनार्वे फिर अन्य परीक्षकोंसे परीक्षा कराई जावे | एक कमरेकी आमने सामनेकी दीवालों पर दोनों चित्र बनानेको तैयार हुए। कोई किसीका देख 'न ले इसलिये बीचमे परदा डाल दिया गया। चित्रकारने कहा कि मैं १५ दिनमे चित्र तैयार कर लूगा। इतने ही समयमे तुझे भी करना पड़ेगा। उसने कहामैं पौने पन्द्रह दिनमें कर दूंगा, घबड़ाते क्यों हो ? चित्रकार चित्र बनानेमें लग गया और दूसरा दीवाल साफ करनेमें । उसने १५ दिन मे दीवाल इतनी साफ कर दी कि काचके समान स्वच्छ हो गई। १५ दिन बाद लोगोंके सामने बीचका परदा हटाया गया। चित्रकारका पूरा चित्र उस स्वच्छ दीवालमे प्रतिविम्बित हो गया
और इस तरह कि उसे स्वयं अपने मुहसे कहना पड़ा कि तेरा चित्र अच्छा है। क्या उसने चित्र बनाया था ? नहीं, केवल जमीन ही स्वच्छ की थी पर उसका चित्र बन गया और प्रतिद्वन्द्वीकी अपेक्षा अच्छा रहा । आप लोग क्षमा धारण करें, चाहे उपवास एकाशन आदि न करें। क्षमा ही धर्म है और धर्म ही चरित्र है। कुन्दकुन्द स्वामीका वचन है
चारित्त खलु धम्मो धम्मो जो सो समो त्ति णिहिटो । मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो हु समो ॥ यह जीव अनादि कालसे पर पदार्थको अपना समझ कर