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पर्व प्रवचनावली वे न्यायशास्त्रके बड़े भारी विद्वान् थे। उन्होंने अपने जीवनमें २५ वर्ष न्याय ही न्याय पढ़ा था। वे व्याकरण प्रायः नहीं जानते थे। एक दिन उन्होंने किसी प्रकरणमे अपने गुरुजीसे कहा कि जैसा 'वक्ति' होता है वैसा 'ब्रीति' क्यों नहीं होता? उनके गुरु उनकी मूर्खता पर बहुत क्रुद्ध हुए और बोले कि तूं वैल है, भाग जा यहाँसे । दुलार झा को बहुत बुरा लगा। उनका एक साथी था जो व्याकरण अच्छा जानता था और न्याय पढ़ता था । दुलार झाने कहा कि यहाँ क्या पढ़ते हो ? चलो हम तुम्हे घर पर न्याय बढ़िया पढ़ा देंगे। साथी इनके गाँवको चला गया। वहाँ उन्होंने उससे एक साल में तमाम व्याकरण पढ़ डाला और एक साल बाद अपने गुरुके पास आकर क्रोधसे कहा कि तुम्हारे बापको धूल दी, पूछले व्याकरण कहाँ पूछना है ? गुरु ने हंसकर कहाआओ बेटा । मै यही तो चाहता था कि तुम इसी तरह निर्भीक बनो । मैं तुम्हारी निर्भीकतासे बहुत संतुष्ट हुआ पर मेरी एक बात याद रक्खो
अपराधिनि चेत्क्रोधः क्रोधे क्रोध कथ न हि ।
धर्मार्थकाममोक्षाणा चतुर्णां परिपन्थिनि ॥ दुलारझा अपने गुरुकी क्षमाको देखकर नतमस्तक रह गये। क्षमासे क्या नहीं होता ? अच्छे-अच्छे मनुष्योंका मान नष्ट हो जाता है । दरभंगामें दो भाई थे। दोनों इतिहासके विद्वान थे। एक बोला कि आला पहले हुआ है और दूसरा बोला कि ऊदल पहले हुआ है। इसीपर दोनोंमे लड़ाई हो गई। आखिर मुकदमा चला और जागीरदारसे किसानकी हालतमें आ गये। क्षमा सर्व गुणोंकी भूमि है। इसमे सब गुण सरलतासे विकसित हो जाते हैं। क्षमासे भूमिकी शुद्धि होती है। जिसने भूमिको शुद्ध कर लिया उसने सब कुछ कर लिया। एक गाँवमे दो आदमी थे