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पर्व प्रवचनावली
यहाँ श्री चौधरनबाईके मन्दिरमे पुष्फल स्थान है इसलिये प्रात:कालके प्रवचनकी व्यवस्था इसी मन्दिरमें रहती थी । प्रातः ८। बजेसे श्री मुनि आनन्दसागरजीका प्रवचन उसके बाद पं० द्वारा तत्त्वार्थसूत्रका मूल पाठ, और उसके बाद धर्मपर हमारा प्रवचन होता था । प्रवचनोंकी कापी पं० पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने की थी । जन कल्याणकी दृष्टिसे उन प्रवचनोंको यहां दे देना उपयुक्त समझता हॅू ।
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आज पर्वका प्रथम दिन है ३५० दिन बाद यह पर्व आया है 1 क्षमा सबसे उत्तम धर्म है । जिसके क्षमा धर्म प्रकट हो गया उसके मार्दव, आर्जव और शौच धर्म भी अवश्यमेव प्रकट हो जायेंगे । क्रोधके अभाव से आत्मामे शान्ति गुण प्रकट होता है । वैसे तो आत्मा शान्ति सदा विद्यमान रहती है क्योंकि वह आत्माका स्वभाव है—गुण हैं । गुण गुणीसे दूर कैसे हो सकता है ? परन्तु निमित्त मिलनेपर वह कुछ समय के लिए तिरोहित हो जाता है । स्फटिक स्वभावत स्वच्छ होता है पर उपाधिके संसर्गसे अन्य रूप हो जाता है । हो जाओ, पर क्या वह उसका स्वभाव कहलाने लगेगा ? नहीं, अग्निका संसर्ग पाकर जल उष्ण हो जाता है पर वह उसका स्वभाव तो नहीं कहलाता । स्वभाव तो शीतलता ही है । जहां अग्निका सम्बन्ध दूर हुआ कि फिर शीतलका शीतल । क्या बतलावें ? पदार्थका स्वरूप इतना स्पष्ट और सरल हैं परन्तु अनादि कालीन मोहके कारण वह दुरूह हो रहा है ।
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