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रेशन्दीगिरिमें पज कल्याणक
३२३ वेदीपर दिखाया गया। कुछ समय पूर्व कैलाशपर्वतपर योग निरोध किये हुए भगवान् विराजमान थे पर कुछ ही समयके अनन्तर उनका प्रतिविन्न वहाँसे उठा लिया गया और चन्दनकी समिधाओं मे कपूर द्वारा अग्नि प्रज्वलित कर यह दृश्य दिखाया गया कि भगवान् मोन चले गये। यह दृश्य देखकर जनता मुखसे तो जयध्वनिका उच्चारण करती थी परन्तु नेत्रोंसे उसके अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी। मेरा परिणाम भी गद्गद् होगया जिससे अधिक तो नहीं कह सका पर इतना मैंने अवश्य कहा कि जन्मापाय ही मोक्ष है। जन्मके कारणोंके अभावमे जीव स्वयं मुक्त होजाता है। जन्मका कारण आयु है। जिस जीवका मोन होना है उसके आयु बन्ध नहीं होता। जो आयु है उसका अन्त होनेपर जीवका मोक्ष होजाता है । वात सरल है परन्तु यह जीव मोहपदसे इतना उन्मत्त हो रहा है कि आपको जानता ही नहीं । जो बात करेगा वह विपरीत अभिप्रायसे रिक्त नहीं होती। पण्डालकी समस्त व्यवस्था पं० पन्नालालजी सागर सम्हाले हुये थे जिससे समयानुकूल सव कार्य होनेमे रुकावट नहीं होती थी। मेलामें लगभग १५-२० हजार जैन जनता आई होगी। किसीकी कुछ हानि नहीं हुई और न वर्षा आदिका किसीको कुछ कष्ट हुआ। सव सानन्द अपने अपने घर गये । मैं भी यहाँसे चलकर दलपतपुर आगया।