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________________ ૩રર मेरी जीवन गाया कि त्रिलोकके जीवोंको अपारसे कैसे मुक्त करें और कहाँ हम स्वयं ही अपायमें फंस गये । भगवान्के ऐसा चिन्तवन करते ही लोकान्तिक देव आ गये और उन्होंने वारह भावनाओंका पाठकर भगवान्की श्लाघा की। कैसा वह समय होता होगा कि जब जरासा निमित्त मिलनेपर आदमी विरक्त हो जाते थे और ऐसे आदमी जिनके वैभवके साथ स्वर्गका वैभव भी ईर्ष्या करता था। आज तो वैभवके नामपर फटी लंगोटी लोगोंके पास है पर उसे भी त्यागनेका भाव किसीका नहीं होता। रात्रिको परवारसभामें एकीकारण वावत जो प्रस्ताव पपौरामें हुआ था उसपर पं० जगन्मोहनलालजीने प्रकाश डाला। चचो बहुत हुई परन्तु लोगोंका कहना था कि यदि वास्तवमें एकीकरण चाहते हो तो इन जातीय सभाओंको समाप्त करो। इन सभाओंने जनताके हृदयमे फूट डालनेके सिवाय कुछ नहीं किया है। इन सभाओंके पहले जहाँ लोग आपसमे एक दूसरेसे मिल जुलकर रहते थे वहाँ अब अपने परायेका भेद होगया। अन्तसे कुछ हुआ नहीं। इतना उदारतापूर्ण दृष्टिकोण अपनानेके लिये लोगोंमे क्षमता नहीं। आगामी दिन मध्याह्नके वाद ज्ञानकल्याणकका उत्सव हुआ। कृत्रिम समवसरणके वीच भगवान् आदि जिनेन्द्र विराजमान थे। विद्वानोंने दिव्य ध्वनिके रूपमे जैनागम सम्मत तत्त्वोंका वर्णन किया। जिसका जनतापर अच्छा प्रभाव पड़ा। रात्रिको यहाँकी पाठशालाका अधिवेशन था। पं० कैलाशचन्द्रजीने पाठशालाकी अपील की । क्षेत्र तथा प्रान्तकी स्थितिपर अच्छा प्रकाश डाला जिससे लोगोंके परिणाम द्रवीभूत होगये। कुछ चन्दा भी होगया परन्तु विद्याकी ओर जैसी रुचि लोगोंकी होनी चाहिये वह नहीं प्रकट हुई। इसका कारण विद्याका रस अभी इनके जीवनमे आया नहीं। फाल्गुन शुक्ला ७ को निर्वाण कल्याणकका दृश्य प्रातःकाल पंडालकी
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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