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मेरी जीवन गाथा . पञ्चकल्याणक उस महान आत्माका होता है जो पूर्व जन्ममें दर्शन विशुद्ध आदि सोलह कारण भावनाओंका चिन्तवन करता है तथा अपायविचय नामक धर्मध्यानमे बैठकर लोक कल्याणकी सातिशय भावना भाता है। ऐसे जीव भरत क्षेत्रमें देश कोड़ा कोड़ी सागरके एक युगमें केवल २४ ही उत्पन्न हो पाते हैं। समग्र अढ़ाई द्वीपमें एक साथ १७. से अधिक ऐसे व्यक्ति नहीं हो पाते । तीर्थंकर प्रकृति सातिशय पुण्य प्रकृति है। इसका जिसके वन्ध होता है उसके जन्म लेते ही तीनों लोकोंमें क्षोभ मच जाता है। फागुन कृष्णा ३ को भगवान्का गर्भ कल्याणक हुआ ४ को जन्म कल्याणक हुआ. इन्द्र इन्द्राणी जब भगवान् को ऐरावत हाथी पर विराजमान कर टेकड़ी पर चढ़े तब बड़ा सुन्दर दृश्य था। रात्रिको विद्वानोंके सार गर्भित भाषण होते थे। प्रातःकाल नीचेके मन्दिरोंके पास जो पण्डाल बना था उसमें शास्त्र प्रवचन होता था। मुनि क्षीरसागरजीका भी व्याख्यान हुआ। सामयिक व्याख्यान था परन्तु आपने एक तत्वाथे सूत्र प्रकाशित कराया जिसके वीच बीचमें अनेक पाठ मिला दिये। उमास्वामीकी रचनाको प्रक्षिप्तकर दिया तथा यह आलोचनाकी कि आचार्य उमास्वामी इस आवश्यक बातको छोड़ गये । महाराजकी यह कृति विद्वानोंको पसन्द नहीं
आई । उनका कहना था कि आपको यदि कोई वातकी त्रुटि मालूम होती है तो उसे अलगसे दें। एक ऐसे आचार्यकी रचनाको जिसे पूज्यपाद अकलंक, विद्यानन्द, श्रुतसागर आदि आचार्योंने परिपूर्ण मान अपनी टीकाओं तथा भाष्योंसे अलंकृत किया है, प्रक्षिप्तकर दूपित न करें । परन्तु महाराज दूसरेकी वात या अभिप्रायको न सुननेका प्रयास करते हैं और न समझने का।
पञ्चमीको पंडालमें राव्यगद्दीका उत्सव होनेके बाद वट वृक्षके नीचे दीक्षाकल्याणकका उत्सव हुआ। समारोह अच्छा था । व्रती