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________________ रेशन्दीगिरिमें पञ्च कल्याणक पात्र है। अनादिकालसे हम जिस पर्यायमे गये उसे ही अपनाया। यद्यपि उसे अपनाना पोयापेक्षया सर्वथा मिथ्या नहीं परन्तु उसे ही सर्वथा निजस्वरूप मान लिया इसलिये शुद्र द्रव्यसे विमुख हो अनादिकालसे पर्यायोंमे ही उलझते रहे ।। वमौरीसे १ मील चलकर वेरखेरी आये । यहाँ एक क्षत्रिय महाशय रहते हैं जो बहुत ही सरल परिणामी हैं। मांसके त्यागी हैं। इनके वंशमें शिकारका भी त्याग है । यहाँसे ५ मील चलकर सिद्ध क्षेत्र नैनागिरि (रेशन्दीगिरि) आगये । सुन्दर स्थान है। पाठशालाके छात्रोंने स्वागत किया। यहाँ पर्वतपर पार्श्वनाथ समवसरणके नामसे एक विशाल मन्दिरका निर्माण हो रहा है। श्री पार्श्वनाथ भगवान्की शुभ्रकाय विशाल मूर्तिकी प्रतिष्ठा होनेवाली है। माघ शुक्ला १५ को श्री १०८ क्षोरसागरजी मुनि यहाँ आये। रेशन्दीगिरिमें पञ्च कल्याणक फाल्गुन कृष्णा ३ सं० २००८ से पञ्चकल्याणकका मेला रेशन्दीगिरिजीमें था। नाला पार करके मैदानमें विशाल पण्डाल बनाया गया था। एक छोटा पण्डाल नीचेके मन्दिरोंके पास भी बना था। धीरे धीरे मेला भरना शुरू हो गया। विद्वत् परिषद् की कार्यकारिणीकी बैठक थी अतः विद्वन्मण्डली उपस्थित थी। खास कर पं० वंशीधरजी इन्दौर, पं० कैलासचन्द्रजी, खुशालचन्द्रजी जगन्मोहनलालजी, दयाचन्द्रजी आदि सभी प्रमुख विद्वान् थे। प्रतिष्ठाके कार्यके लिये श्री पं० वारेलालजी पठा तथा समगौरयाजी आये हुए थे। डेरा तम्बुओंका भी अच्छा प्रबन्ध था।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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