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मेरी जीवन गाथा
यह ० नाथूरामका ग्राम है । दूसरे दिन इन्हींके यहाँ भोजन हुआ । यहाँपर जो व्यय हो उसपर )। एक पैसा रुपया विद्यादान मे देना लोगोंने स्वीकृत किया । यहाँपर दिल्लीसे लालामक्खन लालजी आगये । विरक्त मनुष्य हैं, गृहसे उदासीन हैं सर्व सम्पन्न होकर भी विरक्त होना ऐसे ही शूरका काम है। दरगुवाँसे चलकर हीरापुर आगये । मन्दिर के सामने धर्मशाला है, उसीमें ठहरे । सामने कूप है । उसके बाद चौक है । फिर मन्दिर है । मन्दिर स्वच्छ है । मूर्तियाँ स्वच्छ हैं । रात्रिको शास्त्र होता है । यहाँपर तिगोड़ासे पण्डित पद्मकुमारजी आगये । आप त्यागी कमलापति सेठ वरायठाके पुत्र हैं, सुबोध हैं, अन्तरसे आर्द्र है। रात्रि को ० नाथूरामने सबको शास्त्र श्रवण कराया ।
हीरापुर से चलकर शाहगढ़ आये । बड़ा ग्राम है । जनसंख्या अच्छी है ? लोगोंमें सौमनस्य भी है । मन्दिर में प्रवचन हुआ । जनता अच्छी उपस्थित थी । ज्ञानार्णवमे अन्यत्व और एकत्व भावनाका विपय था । एकत्व भावनाका यह अर्थ है कि मनुष्य स्वकृत कर्मके अच्छे बुरे फलको अकेला ही भोगता है । किसीके सुख दुःखमे कोई शामिल नहीं होता अतः परके पीछे आत्मपरिणामको विकृत नहीं होने देना यही बुद्धिमत्ता है । अन्यत्व भावनाका अर्थ यह है कि आत्मा शरीरसे भिन्न है अतः शरीरके विकारको आत्माका विकार मान व्यर्थ ही रागी द्वेपी मत बनो । यहाँ २ मन्दिर हैं । रात्रिको शास्त्र प्रवचन होता है । शाहगढसे
मौरी गये। यह श्री १०५ क्षुल्लक क्षेमसागरजीका ग्राम है। लोगोंमें धार्मिक रुचि है । एक मन्दिर है । प्रवचन हुआ । उपस्थिति अच्छी थी। प्रवचनका सार यह था कि भूल अज्ञानसे होती है । यह आत्माका मोह जन्म विकार है । जैसे भ्रमज्ञान मिथ्या है। वैसे ही ज्ञान मिथ्या है। इस भूलको त्यागनेवाला ही मनुष्यताका