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द्रोणगिरि और रेशन्दीगिरि
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स्त्रीयइत्यादि चतुष्टयके अनुरूप होते हैं | इतर तो निमित्त मात्र होते हैं। जिसमे अचेतन पदार्थ तो उदासीन ही होकर कार्य करते हैं । उदासीनसे तात्पर्य अभिप्राय शून्यसे है । जिनके अभिप्राय है. वे चेतन हैं । वह चेतन जो कार्य करते हैं वह भी कपायके अनुरूप ही करते हैं । आत्मा नामक एक द्रव्य है । इसमे ही चेतना गुण है । उस चेतना गुणके द्वारा ही यह पदार्थोंको देखता जानता है । परमार्थसे न देखता है, न जानता है । केवल अपने स्त्ररूपमे मग्न रहता है किन्तु आत्मा अनादि कालसे मोहकी संगति है जिससे आत्मा में विपरीताभिप्राय होता है । उस विपरीताभिप्रायके कारण यह पर पदार्थोंमे निजत्व का अनुभव करता है । अथवा पर और निज यह कल्पना भी मोहके प्रभावसे ही होती है । जिस दिन यह कल्पना मिट जावेगी उसी दिन शान्तिका साम्राज्य अनायास हो जावेगा ।
पौप शुक्ला १४ सं० २००८ को प्रातःकाल ४ मील चल कर मलहरा आ गये । गुरुकुल में ठहर गये । यहाँ सिघई बृन्दावनलाल बहुत ही विवेकी, उदार तथा हृदय के स्वच्छ हैं । आपके प्रतापसे यहाँ गुरुकुल वन गया । प्रान्तमे अशिक्षाका प्रचार बहुत है । पहले देशी रजवाड़े थे इसलिये प्रजाकी उन्नति के विशेष साधन राज्यकी ओरसे नहीं थे । अब विन्ध्यप्रदेशमे यह सब स्थान आ गये हैं तथा राज्यकी ओरसे शिक्षाके साधन भी जुटाये जा रहे हैं । आशा है आगे चल कर यहाँ की प्रजा भी उन्नति करेगी । यहाँ १६ दिन रहे । प्रातःकाल प्रवचन हुए । इसीके बीच एक दिन माघ कृष्णा १४ को गंज गये । वहाँ एक बाईके यहाँ पंक्ति भोजन था । २०० आदमी आये होंगे। श्री जीका जल विहार हुआ । प्रान्त मे सरलता बहुत है ।
मलहरा ६ मील चलकर माघशुक्ला ४ को दरगुवाँ आगये ।