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मेरी जीवन गाथा
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पाठशालाको दान दिया । इनके पास विशेष विभूति नहीं, अन्यथा यह बहुत कुछ दे सकते हैं ? यहाँ सतपारासे हीरालाल पुजारी तथा ४ आदमी और गये जिससे भोजनके बाद वहाँ गये । दूसरे दिन प्रातःकाल फिर पद्मपुराणका स्वाध्याय किया । राम-रावणके संग्रामकी चर्चा थी । रावणने अमोघ शक्तिका प्रयोग कर लक्ष्मणके उरःस्थलमें आघात किया । श्रीरामने बहुत ही शोक किया। बहुत ही मार्मिक उद्गार उनके हृदयसे निकले । यह सब मोहका प्रताप है कि एक मोक्षगामीके हृदयसे इस प्रकारके वाक्य निकले । मोहके उदयमें आत्माकी यही दशा हो जाती है । ठीक है, परन्तु जिनके हृदयमे विवेक है वे बाह्यमें कुछ आलाप करें परन्तु अन्तस्तल में उनकी श्रद्धामें अणुमात्र भी अन्तर नहीं आता । द्रोणगिरिके अञ्चलमें भ्रमणकर पुनः द्रोणगिरि आगये ।
पौष शुक्ला १२ सं० २००८ को पं० दुलीचन्द्रजी वाजना तथा मलहरासे कई सज्जन शास्त्रसभा आगये । घनगुवांसे भी कई सज्जन आये । मलहरा जानेका विचार था परन्तु मेघवृष्टिके कारण जा नहीं सके । निश्चिन्ततासे प्रवचन किया । प्रवचनका सार यह था कि यद्यपि संसारमें प्रेमकी बहुत प्रशंसा होती है परन्तु संसारमें चक्रवत् परिभ्रमण करानेवाला यही प्रेम है । सर्वे बन्धनोंमें कठिन वन्धन प्रेम-स्नेहका है । इसपर विजय प्राप्त करना नरसिंहका काम है । श्वाल प्रकृतिके मनुष्य आप कायर होते हैं तथा अन्यको कार वनाते हैं। अनादि कालीन प्रकृतिका निवारण करना अति दुर्लभ है । कहना सरल है परन्तु कार्यमें परिणत करना कठिन है प्रायः उपदेश देनेका प्रत्येक व्यक्ति प्रयत्न करता है किन्तु उस पर अमल करनेवाला ही शूर होता है । ऐने मनुष्यको ही गणना उतन मनुष्यों में होती हैं | प्रथम तो सिद्धान्त यह है कि कोई किमीस उपकार नहीं कर सकता क्योंकि सब द्रव्योंके परिणमन स्वीय