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द्रोणगिरि और रेशन्दीगिरि
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प्रहार से ५ मील चल कर लार आ गये । मार्ग में बहुत कण्टक हैं किन्तु यहाँ के मनुष्य इसी स्थानमे रहते हैं अतः उन्हें आने जानेमे आपत्ति नहीं होती । लार में १ मन्दिर है । यहाँ आते ही ग्रामीण जनता इकट्ठी हो गई। श्री नाथूरामजी वर्णीने समयोपयोगी व्याख्यान दिया। आपने जनताको समीचीन पद्धतिसे समझाया कि संसारमें ज्ञानके बिना कोई कार्य नहीं चलता । यदि हमको ज्ञान न हो तो हम अपना हित नहीं जान सकते । हमारा क्या कर्तव्य है ? क्या अकर्तव्य है ? तथा यह भक्ष्य है, यह अभक्ष्य है, यह माँ है, यह बहिन है, यह भ्राता है, यह सुत है, यह पता है इत्यादि जितने व्यवहार हैं सर्व लुप्त हो जायेंगे । अतः आवश्यकता ज्ञानार्जनकी है । ज्ञानका अर्जुन गुरुद्वारा होता 'है । इसीसे उनकी शुश्रूषा करना हमारा कर्तव्य है । बिना गुरुकी कृपाके हमारा अज्ञानान्धकार नहीं मिट सकता । जैसे सूर्योदयके बिना रात्रिका अन्धकार नहीं जाता वैसेही गुरुके उपदेश बिना हमारा अज्ञान नहीं जाता। यही कारण है कि हम गुरुको माता. पितासे अधिक मानते हैं। माता पिता तो जन्म देनेके ही अधिकारी हैं किन्तु गुरु हमको इस योग्य बना देते हैं कि हम संसारके सर्व कार्य करनेमें पटु बन जाते हैं । आज संसारसे गुरु न होता तो हम पशुतुल्य हो जाते ।
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यहाँ शान्तिनाथ भगवान् की संवत् १८७२ की प्रतिष्ठित प्रतिमा बहुत मनोहर है । मन्दिर भी बहुत विस्तारसे है । २ मन्दिर हैं । २० घर जैनियोंके हैं । प्रायः सम्पन्न हैं । धर्मशाला है