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पपौरा और अहार क्षेत्र
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हैं। वहाँ जिनेद्रदेव के दर्शन किये । स्थान बहुत प्राचीन है परन्तु जैन जनताकी विशेष दृष्टि नहीं इससे जीर्ण अवस्थामे हैं । यहाँ पर अहार की मूर्तिके सदृश एक विशाल मूर्ति है परन्तु जिस स्थान पर है वह जीर्ण हो रहा है । यहाँसे चल कर ग्राममें मन्दिर के चबूतरे पर बैठ गये। कई सज्जन ग्रामवाले आये । विद्यादानकी चर्चा की गई। कई जैन बन्धुओंने दान देनेका विचार किया और यहाँ तक साहस किया कि इतर समाज भी इनके सदृश दान देवे तो यहाँ एक हाईस्कूल हो सकता है परन्तु लोग इस ओर दृष्टि नहीं देते । यहाँके मास्टर गहोई वैश्य हैं। बहुत ही निर्मल परिणामवाले हैं ।
यहाँ से टीकमगढ़ पहुँचे । मन्दिरमें प्रवचन किया । संख्या अच्छी थी । भोजन किया । पश्चात् पं० ठाकुरदासजीके यहाँ गया । उनका स्वास्थ्य खराब था । योग्य व्यक्ति हैं । धर्मकी श्रद्धा अटल है। बीमारीका वेग थम गया है । आशा है जल्दी अच्छे हो जावेंगे। मार्गशीर्ष शुक्ला ५ सं० २००९ को पपौरा गये । स्नानादि से निवृत्त हो कर पाठ किया । तदनन्तर श्री क्षुल्लक क्षेमसागरजीके साथ समस्त जिनालयोंकी वन्दना की । मेलाका उत्सव था अतः बाहर से जनता बहुत आई थी । पण्डित जगन्मोहनलालजी कटनी और पं० फूलचन्द्रजी के पहुँच जानेसे मेलाकी बहुगुणी उन्नति हुई । पपौराका उत्सव हुआ । बीचमें मन्दिरोंके जीर्णोद्धारकी चर्चा को अवसर मिल गया । सागर से समगौरयाजी भी पहुँच गये थे । आपने बहुत ही उत्तम व्याख्यान दिया । जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ा । सभापति महोदयने १००) जीर्णोद्धार में दिया । अन्य लोगोंने भी दिया जिससे चन्दा अच्छा हो गया । इसके बाद समयकी 'त्रुटि होने से विद्यालयका उत्सव नहीं हुआ। अगले दिनके लिये स्थगित कर दिया गया ।
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