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मेरी जीवन गाथा दुखी हुए । ५३ माहके करीब एकत्र वास करनेसे लोगोंका स्नेह बढ़ गया इसलिये जाते समय दुःख होने लगा। मैंने कहा-संसारमे सव पदार्थों का परिणमन अपनी अपनी योग्यताके अनुसार होता है । हम चाहते हैं कि यहाँसे पपौरा जावें । आप चाहते हैं कि वर्णीजी यही रहें। आपका परिणमन आपके आधीन, हमारा परिणमन हमारे आधीन । दोनोंका परिणमन सदा एकसा नहीं रहता। कदाचित् निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध जुटनेपर हो भी जाता है । जव यह प्राणी दूसरे पदार्थके परिणमनको अपनी इच्छानुसार परिणत करानेका प्रयास करता है और अन्य पदार्थका परिणमन उसकी इच्छाके अनुरूप होता नहीं तव यह दुःखी होने लगता है-अशान्तिका अनुभव करने लगता है इसलिये मोहकी परिणति छोड़ो और शान्तिसे अपना समय यापन करो। कालेजका आपने जो उपक्रम किया है वह प्रशस्त कार्य है। यह आगे बढ़ता रहे ऐसा प्रयास करें। ज्ञान आत्माका धन है। आपके बालक उसे प्राप्त करते रहें यह भावना आपकी होना चाहिये ।"इतना कहकर मैं आगे बढ़ गया। बहुत जनता भेजने आयी पर क्रम-क्रमसे निवृत्त हो गई।
पपौरा और अहार क्षेत्र कचरोंदा ललितपुरसे ११ मील है। वहीं पर मड़ावरावाले राजधर सोरयाके पुत्रकी स्त्रीने आहार दिया। यहाँसे ११ मील चल कर वानपुर आये। यहाँ पर एक मन्दिर महान है। वर्तमानमे तो कई लाख रुपया लगाकर भी नहीं बन सकता । यहाँ पर रात्रि विताई। प्रातःकाल १ मील महरोनीके मार्गमें क्षेत्रपाल