________________
तीव्र वेदना
३०३
लिये ही प्रचार किया जाता है कि अमुक स्थानपर धन देने से सीधा स्वर्ग मिल जाता है । अस्तु,
फोड़ा में आराम तो आपरेशन के दिनसे ही होने लगा था परन्तु धावके भरनेमें एक मासके लगभग लग गया । इस बीचमें दिल्लीसे राजकृष्ण, सागरसे बालचन्द्र मलैया. पं० पन्नालाल, बस्वासागरसे बाबू रामस्वरूप तथा पं० मनोहरलालजी आदि स्नेही लोग आये । न जाने संसार में स्नेह कितनी वला है। इसके आधीन होकर यह प्राणी परको प्रेम दृष्टिसे अवलोकन करता है । केवल अवलोकन ही नहीं करता परको अपनाना चाहता है । जब कि यह अपनानेका अभिप्राय मिथ्या है । कोई पदार्थ किसीका नहीं होता । जितने पदार्थ जगत् में हैं सव अपनी सत्ता लिये भिन्न भिन्न हैं। धीरे धीरे मार्गशीर्षका मास आ गया । मनोहरलालजी वणीं मेरठ चले गये । केवल क्षुल्लक संभवसागरजी हमारे साथ रह गये । फोड़ा अच्छा होगया । चलनेमें कोई प्रकारकी बाधा नहीं इसलिए हमने मार्गशीर्ष ३० को ललितपुरसे जानेका निश्चल कर लिया ।
इसके एक दिन पूर्व चौधरीजीके मन्दिरमें प्रातःकाल जनताका सम्मेलन हुआ । समूह अच्छा रहा किन्तु सव प्रयोजनकी वात कहते हैं, तात्त्विक वात नहीं । मनमें और, वचनमे और यह लोगोंकी वात करनेकी आज परम्परा बन गई है परन्तु हमारा तो यह विचार है कि मनसे हो सो वचनसे कहिये और जो कहिये उसे उपयोगमें लाइये । केवल वचनमें लानेसे कल्याणका मार्ग विशद न होगा । जवतक अमल ( चारित्र) में न आवेगा तबतक कल्याण होनेका नहीं | पं० फूलचन्द्रजीका भी व्याख्यान हुआ और आपने इस बातका | प्रयास किया कि सब सौमनस्यके साथ कालेजका काम आगे बढ़ावें ।
जय ललितपुरसे प्रस्थान करनेका समय आया तब लोग बहुत