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क्षेत्रपाल में चातुर्मास
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इनकी कवितामें माधुर्य तथा ओज रहता है । केन्द्र स्थान होनेसे यहाँ · विद्वानोंका समागम होता रहता है । जनताके आग्रहवश बनारस से पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री भी आ गये । आप बहुत ही स्वच्छ तथा विचारक विद्वान् हैं। किसी कामको उठाते हैं तो उसके सम्पन्न करने कराने में अपने आपको तन्मय कर देते हैं। किसी प्रकारका दुर्भाव इनमें देखनेमे नहीं आया । प्रातःकालके प्रवचनमें शहरसे १ मील दूर होने पर भी अधिक संख्यामे जनता दौड़ी आती थी । हमारा भी उद्देश्य रहा कि जनताके हाथ कुछ तो भी लगे । इसी उद्देश्यसे सागारधर्मामृतका प्रवचन शुरू कराया । प्रवचन स्थानीय विद्वान् तथा अन्य श्रागन्तुक विद्वानो मेसे कोई विद्वान् करते थे और उसके बाद हम भी कुछ थोड़ा कह देते थे । स्त्री पुरुष दोनो ही श्रवणमे उपयोग लगाते थे ।
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सभी स्त्री-पुरुष आत्महित चाहते हैं परन्तु उस ओर लक्ष्य नहीं देते। केवल कथा कर या श्रवण कर आत्महित चाहते हैं । आत्महित क्या है यह कुछ कठिन नहीं परन्तु प्राप्त नहीं होता इसलिये कठिन भी है । अनादिसे यह जीव शरीरको निज मानता आता है । आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओंमे ही इस जीवका समग्र समय निकल जाता है । आत्महितकी ओर इसका लक्ष्य ही नहीं जाता । संज्ञाओंकी परिपाटीसे निकल जाना किसी विरले निकट भव्यका कार्य है । संसारके यावन्मात्र प्राणी आहारकी अभिलाप से संत्रस्त है । आहारके अर्थ ही उसके समस्त उपाय हैं । यदि आहार प्राप्तिकी आकाक्षा मुनिके हृदयमे न होती तो वन छोडकर शहरके दूषित वातवरणमे क्यों आते ? भय होने पर जीव भागनेकी इच्छा करते हैं । वृद्धावस्थासे शरीर जर्जर है । अनेक रोगोंकी असह्य वेदना भी उठा रहा है, फिर भी