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________________ २८२ मेरी जीवन गाथा तथा कार्तिक सुदी प्रतिपदा तक ललितपुरमें रहनेका नियम किया। साथ ही यह भी नियम किया कि प्रातःकाल शास्त्र प्रवचनके बाद गल्पवादमे नहीं पड़ना, मध्यान्हकी सामायिकके वाद अध्ययनमें काल लगाना और रात्रिको प्रायः नहीं बोलना । प्रायः का अर्थ आवश्यकता पड़ने पर बोलनेकी छूट थी। यहाँ पर ५ बजे सब स्कूलोंके छात्र आये। उन्हें यहाँवाले भाइयोंने लाडू बाँटे । बालक प्रसन्न थे। १००० से ऊपर होंगे। यह अवसर सबके लिए मनोहर था-सब ही प्रसन्न चित्त थे। यदि ऐसे उत्सव जिनमें निज और परका भेद न हो, होते रहे तो नागरिक जनताका पारस्परिक सौहार्द बना रहे। क्षेत्रपाल ललितपुरका सर्वाधिक मनोरम स्थान है। एक अहातेके अन्दर भव्य मन्दिर है। श्री अभिनन्दन स्वामीकी मनोज्ञ प्रतिमाके दर्शन करनेसे चित्त आल्हादित हो उठता है। यह प्रतिमा यहाँ महोवासे लाई गई थी ऐसा सुना जाता है । मन्दिरोंके साथ एक धर्मशाला तथा एक विशाल वाग भी संलग्न है। यहाँ पहले संस्कृत पाठशाला चलती थी जो अब टूट चुकी है। यह स्थान शहरसे १ मील स्टेशनके करीव है। सामने हरा भरा पुष्कल मैदान पड़ा है। ललितपुर स्थान भी बुन्देलखण्ड प्रान्तका प्रमुख नगर है। जैनियोंके सात सौ आठ सौ घर हैं। प्रायः सम्पन्न हैं। श्री अतिशय क्षेत्र देवगढ़ तथा पपोराजीका रास्ता यहाँसे होने के कारण लोगोंका प्रायः आवागमन जारी रहता है। व्यापारका अच्छा स्थान है। लोगोंमें धर्म-कर्मकी रुचि भी अच्छी है। यही नहीं इस प्रान्तके सभी लोग सरल तथा संसारसे भीरु रहते हैं। श्री पं० श्यामलालजी न्याय-काव्यतीर्थ तथा पं० परमेष्ठीदासजी न्यायतीर्थ अच्छे विद्वान् हैं। श्री हुकमचन्द्रजी तन्मय बुखारिया और हरिप्रसादजी 'हरि' अच्छे कवि हैं।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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