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क्षेत्रपाल में चातुर्मास
आषाढ़ शुक्ला १३ सं० २००८ को प्रातःकाल ७२३ बजेसे ८१ बजेतक मन्दिरके चौकमें प्रवचन हुआ । प्रथम श्री पं० लक्ष्मीचन्द्रजी का प्रवचन हुआ । फिर ध्वनि विस्तारक यन्त्रके आनेसे घंटा मेरा प्रवचन हुआ । जनता अच्छी थी । ५०० के ऊपर स्त्री पुरुष थे । प्रायः सबने मनोयोग लगाकर प्रवचन सुना । ४ आदमियोंने ४ मासतक ब्रह्मचर्यका नियम लिया । अष्टमी चतुर्दशी अष्टाह्निका पर्व में तो प्राय सबने नियम लिया । सन्तोषसे सभा विसर्जित हुई । तदनन्तर श्री नये मन्दिरजीमे दर्शनार्थ गये । यहाँपर भी रम्य वेदिकाऐं हैं। उनमे विराजमान मनोज्ञ प्रतिमाओं के दर्शन किये । पश्चात् जहाँ शास्त्रप्रवचन होता है वहाँपर जनता बैठ गई । १५ मिनट तत्त्व चर्चा होती रही ।
पश्चात् भोजनके लिए गये । टड़ैयाके घर भोजन हुआ । दो भाई हैं, सुशील हैं, धर्म में रुचि है । यहाँ ४ बजे शाम को समारोह के साथ चलकर क्षेत्रपाल आगये । १००० के लगभग आदमी थे। पं श्यामलालजी और पं० परमेष्ठीदासजीका समयोचित भाषण हुआ। पश्चात् ५ मिनट मेरा भी भाषण हुआ, मेरा तो भाषणकर्ताओंसे सर्व प्रथम यही कहना है कि जो अभिप्राय है उसे ही व्यक्त करो । व्यक्ति प्रशंसासे कुछ लाभ नहीं, प्रत्युत हानि है । दूसरे दिन समयसारका स्वाध्याय किया । जनता प्रसन्न थी । सेठ अभिनन्दनकुमारजी टढैयाके यहाँ भोजन हुआ | कुछ त्यागधर्मका विचार हुआ । मध्यान्ह सामायिकके वाद परस्पर तत्त्वचर्चा करते रहे । ३ बजे प्रतिक्रमण किया
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