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मेरी जीवन गाया जैनेतर जनता भी आई। उसके समक्ष मैंने सुझाव रक्खा कि यहाँ १ मिडिल स्कूल हो जावे तो अति उत्तम होगा। लोगोके मनमें आगई। श्री शिवप्रसाद भट्ट, गोकुलदास तमोली तथा केशवदास दुवे आदिने प्रयत्न किया । हमने कहा-यदि यहाँ मिडिल स्कूल हो जावे तो हम सागरसे सिंघई कुन्दनलालजी द्वारा १०१) भिजवा देवेंगे। लोगोने बताया कि सरकारने आदेश दिया है कि यदि प्रामके लोग १७००) एकत्रित कर लेवें तो यहाँ सरकार मिडिल स्कूल स्थापित कर देवेगा। जनता प्रयत्नशील है अतः आशा है १७००) कोई बड़ी बात नहीं।
यहाँसे वीचमें देवरान ठहरते हुए ललितपुरके निकट एक ग्राममें पहुंच गये। यहाँ पर १ चैत्यालय तथा ३ घर जैनियोंके हैं। ३ घर होते हुए भी इन्होंने आथित्यसत्कार अच्छा किया। यहाँ ललितपुरसे करीब २०० पुरुष आगये। आज यहाँ विश्राम करनेकी इच्छा थी पर लोगोके आग्रहसे विश्राम नहीं कर सका। ४ वजे यहाँसे चल दिया। यद्यपि घामका पूर्व प्रकोप था परन्तु समुदायमें परस्पर वार्तालाप करते सुए १३ मील चलकर वृक्षोंकी सघन छायामें बैठ गये। तदनन्तर वहाँसे चलकर ६ बजे ललितपुर पहुँच गये। ललितपुरमें प्रवेश नहीं कर पाये थे कि स्त्रियों और पुरुषोकी बहुत भारी भीड़ एकत्रित हो गई। जाकर बड़े मन्दिरकी धर्मशालामे ठहर गये। यहाँपर धर्मशालाका विशाल चौक स्त्री और पुरुषों द्वारा पहलेसे ही भर गया था। पं० परमेष्ठीदासजीने व्याख्यान देकर शिष्टाचार पूर्वक वर्णीको योगी बना दिया। इस प्रकार आपाढ़ शुक्ला १२ सं० २००८ को संध्या समय ललितापुरमें आकर चार माहके लिये भ्रमण सम्बन्धी खेदसे मुक्त हो गये ।