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बरुआसागरमें ग्रीष्मकाल
२५६ न्द्रियोंके विषय हैं। विषय निमित्त कारण हैं परन्तु ऐसी व्याप्ति नहीं जो परिणतिको वलात् कलुषित वना ही देवे। विषय तो इन्द्रियोंके द्वारा जाने जाते हैं। उनमे जो इष्टा-निष्ट कल्पना होती है वह कषायसे होती है। कषाय क्या है ? जो आत्माको कलुपित करता है । यह स्वयं होती है । अनादिसे आत्मामें इसका परिणमन चला आ रहा है। हम निरन्तर इसका प्रयास करते हैं कि आत्मामे स्वच्छ परिणाम हो परन्तु न जाने कौनसी ऐसी शक्ति आत्मामे है कि जिससे जो भाव आत्माको इष्ट नहीं वे ही आते हैं। इससे यही निश्चय होता है कि आत्मामे अनादिसे ऐसे संस्कार आ रहे हैं कि जिनसे उसे अनन्त वेदनाओंका पात्र वनना पड़ता है । यदि हमने आत्माको पहिचानकर विकारोंपर विजय प्राप्त कर ली तो हमारा महावीर जयन्तीका उत्सव मानना सार्थक है। ___ सागरसे श्री 'नीरज' आये। आप श्री लक्ष्मणप्रसादजी रीठीके सुपुत्र हैं। आपके पिताका स्वर्गवास होगया । आपके अच्छा व्यापार होता था परन्तु आपने व्यापार त्याग दिया अब आप प्रेसका काम करते हैं । कवि हैं हँसमुख हैं होनहार व्यक्ति हैं। मुझसे मिलनेके लिए आये थे। एक दिन रहकर चले गये।
श्री नाथूरामजी बजाज मवईवाले आये । २ घंटा रहे पश्चात् चले गये । आपने अपने यहाँ सिद्धचक्र विधानका आयोजन किया है। उसी समय पपौरा विद्यालयके लिये २५०००) देनेका वचन दिया है। मुझे आमन्त्रण देने आये थे। विद्यादानकी बात सुन मैंने गरमीकी तीव्रता होने पर भी जाना स्वीकृत कर लिया परन्तु अन्तमे शारीरिक दुर्वलताके कारण हम जा नहीं सके। नरेन्द्रकुमार आया था । वह ज्येष्ठ कृष्णा ७ को सागर गया। स्वाभिमानी है, जैनधर्ममे दृढ़ श्रद्धा है, उद्योगी है, परोपकारी भी है, लालची नहीं, किसीसे कुछ चाहता नहीं, स्कालशिपको आदरके साथ लेता है,