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मेरी जीवन गाथा की प्राप्तिके लिये स्वयं द्रव्य निक्षेप वनो। वीतरागके नाम पाठ करनेसे वीतराग न हो जावेगे। उन्होंने जिस मार्गका अवलन्यनकर वीतरागताकी प्राप्ति की है उस मार्गपर चलकर स्वयं वीतराग होनेका पुरुषार्थ करो क्या पुरुषार्थ हमारे हाथकी बात है ? अवश्य है । जो रागादिक भाव तुममे हों उनका आदर न करो। आने दो, क्योंकि उन्हें तुमने अर्जित किया, अब उनसे तटस्थ रहो। दर्शनके पश्चात् १ घण्टा प्रवचन हुआ। उपस्थिति अच्छी थी परन्तु उपयोग नहीं लगा। अनन्तर आहारको निकले । हृदयमें अनायास कल्पना आई कि आज स्व. पं० देवकीनन्दनजीके घर आहार होना चाहिये। उनके गृहपर कपाट बन्द थे, वहाँसे अन्यत्र गये, वहाँ पर कोई न था, उसके बाद तीसरे घर गये तब वहाँ स्वर्गीय पण्डितजी की धर्मपत्नी द्वारा आहार दिया गया। इससे सिद्ध होता है कि शुद्ध परिणाममें जो कल्पना की जाती है उसकी सिद्वि अनायाम हो जाती है।
चैत्र शुक्ला १० सं० २००८ को यहाँकी पाठशालाके छात्रों यहाँ भोजन हुआ। बड़े भावसे भोजन कराया। भोजन क्या था ? अमृत था। इसका मूल कारण उन छात्रोंका भाव था। स्वच्छ और अस्वच्छ भाव ही शुभाशुभ कर्मका कारण होता है । उन दोनोंसे भिन्न जो सर्वया शुद्ध है वह संसार बन्धनके उन्हेंद्रस्य कारण है। संसार सन्ततिका मूल कारण वामना है । वासना श्रात्मामें ही होती है और उसका उत्पादक मोह है।
चत्र शक्ला १३सं०२००८ को भगवान महावीर म्वामीरे जन्म दिवसका उत्सव था। अनेक व्याख्यान ईये। मैंने तो रेचन यह कहा कि प्रात्मीय परिणतिको कनुचित न होने दो। कनुरिन परि. णामोंका अन्तरग कारण मोद-राग-द्वेष है तथा यार कारा पा